संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलन का बिहार में दिखने लगा असर
धीरे-धीरे बिहार के किसान भी जाग रहे हैं। आज लालगंज (वैशाली) की एक तस्वीर सोशल मीडिया में खूब शेयर की जा रही है। रेल रोको में किसान दिख रहे हैं।
अब तक संयुक्त किसान मोर्चा के हर बड़े कार्यक्रम को बिहार ने स्वीकार किया है, लेकिन उसमें भागीदारी विभिन्न दलों के कार्यकर्ताओं की रही है। पहली बार लालगंज (वैशाली), सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर सहित उत्तर बिहार के कई जिलों में आम किसानों की भागीदारी दिखी है। भाकपा माले के पॉलित ब्यूरो सदस्य धीरेंद्र झा ने कहा कि अब बिहार के किसान भी आंदोलन से जुड़ने लगे हैं।
भाजपा के कई नेता कहते रहे हैं कि बिहार के किसानों को संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलन से मतलब नहीं है। यह सच है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के कई जिलों की तरह बिहार के आम किसान अब तक आंदोलन में नहीं दिखते रहे हैं। हालांकि वे आंदोलन से सहानुभूति रखते हैं।
आज हुए रेल रोको आंदोलन में कम ही सही, पर सचमुच किसानों की भागादारी से वामदल उत्साहित हैं। इसकी एक प्रमुख वजह बिहार में डीजल की कीमत 100 रुपए लीटर हो जाना भी है। इसके साथ ही कृषि उपज की कीमत नहीं मिलना भी वजह है। बिहार के किसान मुख्यः बाजार के लिए नहीं, खाने के लिए खेती करते हैं। लेकिन हर किसान कुछ-न-कुछ कृषि उपज बेचता है, जिसकी कीमत उसे कभी नहीं मिलती। बिहार के किसान एमएसपी पाने के मामले में सबसे पीछे हैं।
आज रेल रोको आंदोलन की मुख्य मांग तीन कृषि कानूनों को रद्द करने के साथ ही लखीमपुर में किसानों को रौंदकर मारे जाने के मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा उर्फ टेनी को मंत्रिमंडल से बरखास्त करने की मांग पर केंद्रित था।
आज के रेल रोको आंदोलन का प्रभाव पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान के अलावा बिहार, झारखंड सहित देशभर में दिखा। अब तक मिली जानकारी के अनुसार 184 स्थानों पर रेल रोकी गई और 164 ट्रेनें प्रभावित हुईं।
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