संसद से सड़क तक मौलाना आजाद फेलोशिप बंद करने का विरोध
केंद्र द्वारा अल्पसंख्यक छात्रों के लिए मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय फैलोशिप बंद करने का विरोध देश में फैला। छात्र संगठनों के बाद शिक्षक संगठन भी विरोध में उतरे।
केंद्र की मोदी सरकार द्वारा मौलाना आजाद राष्ट्रीय फेलोशिप बंद करने का विरोध देश भर में बढ़ता जा रहा है। सोमवार को जेएनयू, डीयू, जामिया के छात्रों ने दिल्ली की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया। अब मंगलवार को जेएनयू शिक्षक संघ ने भी विरोध का बिगुल फूंक दिया है। शिक्षक संघ ने कहा कि अव्पसंख्यक छात्रों की फेलोशिप बंद करना समावेशी विकास और लोकतंत्र के खिलाफ है। इससे पहले कांग्रेस के सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने राज्यसभा में इस मुद्दे को उठाते हुए मोदी सरकार से फेलोशिप अविलंब बहाल करने की मांग की।
जेएनयू शिक्षक संघ ने एक बयान जारी कर कहा कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने मौलाना आजाद फेलोशिप (MAF) बंद करने का निर्णय लिया है। यह फेलोशिप पांच वर्षों के लिए थी, जिसके तहत केंद्र सरकार अल्पसंख्यक छात्रों (मुस्लिम, बौद्ध, ईसाई, जैन, पारसी तथा सिख समुदाय के छात्रों) को पीएचडी करने के लिए आर्थिक तौर पर सहयोग करती थी। केंद्र सरकार के निर्णय से इन वर्गों के छात्रों की उच्चा शिक्षा बाधित होगी। यह समावेशी विकास और लोकतंत्र के खिलाफ है।
#JNU Teachers' Association demanded an immediate reversal of the Centre's decision to withdraw the #MaulanaAzadNationalFellowship for #minority students. Read more here. https://t.co/98RZJtZ5zn
— The Telegraph (@ttindia) December 13, 2022
इससे पहले लोकसभा और राज्य सभा दोनों सदनों में प्री-मैट्रिक तथा मौलाना आजाद फेलोशिप समाप्त करने के खिलाफ सांसदों ने आवाज उठाई। फेलोशिप बंद करने के पीछे सरकार का तर्क है कि यह योजना दूसरी योजनाओं को ओवरलैप करती है। अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी ने गुरुवार को लोकसभा में केरल के त्रिस्सूर से कांग्रेस सांसद टीएन प्रतापन के एक सवाल का जवाब में यह जानकारी दी। उसके बाद से ही देश भर में विरोध हो रहा है। संसद और सड़क के अलावा सोशल मीडिया पर भी तमाम लोग अपना विरोध जता रहे हैं और सरकार से अपना फैसला वापस लेने की मांग कर रहे हैं।
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