सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय ओका ने कहा कि कोर्ट के आयोजनों में धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ नहीं करें, बल्कि संविधान के आगे सिर झुकाएं। उन्होंने कहा कि कोर्ट के किसी कार्यक्रम में पूजा, दीप प्रज्वलन नहीं करें। इसकी जगह संविधान के आगे सिर झुकाएं। पूजा-पाठ की जगह संविधान की प्रस्तावना का पाठ करें। जस्टिस ओका पुणे में कोर्ट के नए भवन के शिलान्यास समारोह को संबोधित करते हुए ये बातें कहीं।

लाइव लॉ की खबर के मुताबिक जस्टिस ओका ने कहा कि डॉ. आंबेडकर ने संविधान तैयार किया। इसकी प्रस्तावना में दो महत्वपूर्ण शब्द हैं। एक धर्मनिरपेक्षता तथा दूसरा लोकतंत्र है। कहा कि इस साल 26 नवंबर को बाबा साहेब के संविधान को लागू हुए 75 साल हो जाएंगे। संविधान की आत्मा इन शब्दों में है धर्मनिरपेक्षता तथा लोकतंत्र। उन्होंने कहा कि हमारी न्यायिक ढांचे का आधार हमारा संविधान है।

इसके बाद उन्होंने कहा कि वे ऐसी बात कहने जा रहे हैं, जो बहुतों को अच्छा नहीं लगेगा। वे समझते हैं कि कोर्ट के किसी कार्यक्रम में धार्मिक अनुष्ठान नहीं होना चाहिए। इसकी जगह हमें संविधान या उसकी प्रस्तावना का चित्र रखना चाहिए और उसके आगे सिर झुकाना चाहिए। हमें यह नई शुरुआत करनी चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा कि जब वे कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस थे, तब कोर्ट के आयोजनों में धार्मिक अनुष्छान रोकने की कोशिश की थी, लेकिन पूरी तरह सफल नहीं हो सका।

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ध्यान रहे एक तरफ जस्टिस ओका हैं, जो न्यायिक प्रक्रिया की आत्मा को संविधान पर आधारित करना चाहते हैं और दूसरी तरफ कोलकाता हाईकोर्ट के एक जज हैं, जिन्होंने कल इस्तीफा देकर भाजपा ज्वाइन कर ली। कहा कि जज रहते हुए भाजपा ने उनसे संपर्क किया था और उन्होंने भी भाजपा से संपर्क किया था। वे भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने जा रहे हैं। कई प्रबुद्ध लोगों ने मांग की है कि जजों को अवकाश लेने के बाद कम से कम दो साल तक किसी दल या संगठन से नहीं जुड़ना चाहिए, ताकि न्यायिक प्रणाली पर देश का भरोसा बना रहे।

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By Editor


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