संजय लीला भंसाली की विवादित फिल्म ‘पद्मावत’ को बैन करने की एक और याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इंकार कर दिया. ऐडवोकेट मनोहर लाल शर्मा की तरफ से दाखिल की गई याचिका में सेंसर बोर्ड पर अवैध तरीके से पद्मावत को सर्टिफिकेट जारी करने का आरोप लगाया था.
नौकरशाही डेस्क
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के नेतृत्व में तीन जजों की बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट एक संवैधानिक कोर्ट है. कोर्ट ने कल अपने एक अंतरिम आदेश में कहा था कि राज्य पद्मावत की स्क्रीनिंग पर रोक नहीं लगा सकते हैं. उधर, चार राज्यों में पद्मावत पर लगे बैन को हटाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी इसका विरोध जारी है। करणी सेना ने फिल्म को रिलीज न होने देने और महिलाओं के जौहर की धमकी दी है। वहीं, बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में फिल्म का पोस्टर लगाये जाने के बाद करणी सेना ने तोड़ – फोड़ भी की.
उधर, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने विवादित हिंदी फिल्म ‘पद्मावत’ को ‘मनहूस’ और ‘गलीज’ बताते हुए मुसलमानों से नहीं देखने का निवेदन किया. ओवैसी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 सदस्यों का पैनल बकवास फिल्म के रिव्यू के लिए गठित किया, जिसने कई दृश्य हटवाए. यह कहानी कवि मलिक मोहम्मद जायसी ने 1540 में लिखी थी, लेकिन इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है. उन्होंने कहा कि जब बात मुस्लिम कानून (ट्रिपल तलाक मुद्दे) की आती है तो प्रधानमंत्री मुस्लिम नेताओं से सुझाव लेना जरूरी नहीं मानते.
उन्होंने फिल्म को बकवास बताते हुए कहा कि मुसलमानों को उन राजपूतों से कुछ सीखना चाहिए, जो अपनी रानी के समर्थन में खड़े हैं. हमें आइना दिखा रहे हैं. वे इस मुद्दे पर एक साथ खड़े हुए हैं और नहीं चाहते कि मूवी दिखाई जाए. हालांकि, मुसलमान बंट जाते हैं. वे इस्लाम के नियमों में बदलाव होने पर भी आवाज बुलंद नहीं करते हैं.