सीमांचल पर क्यों जी-जान लगा रहा महागठबंधन, 4 बातों से समझें
पूर्णिया में 25 फरवरी को महागठबंधन की महारैली के लिए सभी दलों खासकर जदयू-राजद ने पूरी ताकत लगा दी है। आइए, इन चार बिंदुओं से समझें रणनीति।
कुमार अनिल
पिछले लगभग एक महीने से महागठबंधन के दल पूर्णिया महारैली की तैयारी कर रहे हैं। राजद और जदयू ने सीमांचल के सात जिलों के लिए राज्य स्तर के नेता, मंत्रियों को गांव-गांव भेजा है। पूर्णिया में दोनों दलों के नेता रोज ही तैयारी का जायजा ले रहे हैं। गुरुवार को भी मंत्री आलोक मेहता, जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा और अन्य नेताओं ने पूर्णिया में बैठक करके तैयारियों पर बात की। महारैली को नीतीश कुमार तथा तेजस्वी यादव संबोधित करेंगे। लालू प्रसाद ऑनलाइन सभा को संबोधित करेंगे। आखिर महागठबंधन के लिए यह महारैली इतनी महत्वपूर्ण क्यों बन गई है। आइए, इन चार बिंदुओं से समझें।
सीमांचल के पूर्णिया प्रमंडल में लोकसभा की चार सीटें हैं-पूर्णिया, अररिया, कटिहार और किशनगंज। इसके अलावा मधेपुरा, सुपौल की सीटें है। यह इलाका मुस्लिमों की बड़ी आबादी के लिए भी जाना जाता है। महागठबंधन की पहली कोशिश यह है कि दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों का मजबूत मोर्चा बने, ताकि हिंदू-मुस्लिम का ध्रुवीकरण काम न कर सके। भाजपा अंत में ध्रुवीकरण की कोशिश कर सकती है, इसलिए दलित-पिछड़ों को सामाजिक न्याय की लाइन पर मजबूती से संगठित करना पहला लक्ष्य है।
महागठबंधन का दूसरा प्रयास है हिंदूवादी राजनीति के खिलाफ एक बड़ीी गोलबंदी करना। सांप्रदायिक मुद्दों को खारिज करना, नफरत की राजनीति पर हमले करना और भाईचारा, सद्भाव को मजबूत करना। लोगों को किसी धार्मिक मुद्दे पर गोलबंद करने की कोशिश को नाकाम करते हुए जनता के बुनियादी सवाल महंगाई, बेरोजगारी, विकास पर जोर देना।
पूर्णिया रैली पर महागठबंधन के जोर की तीसरी वजह है कि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव विपक्षी एकता के बिहार मॉडल पर देश का ध्यान खींच सकें। वे बताएंगे कि इसी मॉडल से देश की सत्ता से भाजपा को बाहर किया जा सकता है। नीतीश कुमार कह चुके हैं कि सारा विपक्ष एकजुट हो तो भाजपा 303 से घट कर सौ पर आ जाएगी। तेजस्वी यादव कह चुके हैं कि उनकी कोशिश है कि बिहार में 2024 में भाजपा को जीरो पर आउट किया जाए।
और पूर्णिया महारैली पर जोर की चौथी वजह है औवैसी की पार्टी एमआईएम की इस इलाके में मौजूदगी। इसी इलाके से उसके पांच विधायक जीते थे। महागठबंधन इस बार ओवैसी का पार्टी को लोकसभा चुनाव में कोई मौका नहीं देना चाहता।
इन सबके अलावा पूर्णिया रैली के बहाने पहली बार महागठबंधन के जिलों के कार्यकर्ता और नेता एक साथ काम कर रहे हैं। कई बार ऊपर नेताओं में एकता बन जाती है, पर नीचे समन्वय नहीं बनता। इस बार महागठबंधन के नीचे के कार्यकर्ता समन्वित ढंग से कामों का बंटवारा कर के तैयारी कर रहे हैं, जिसका फायदा लोकसभा चुनाव में होगा।
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