बॉयकाट के बावजूद Pathaan ने इतिहास रचा ही, कमाल यह कि Shah Rukh ने नफरतियों को अकेले कुचल कर ऐसी लकीर खीची जो विपक्षी दल 8 साल में न कर सके.
विभिन्न समाचार माध्यमों में आप ने शाह रुख खान स्टार्र मूवी ‘Pathaan’ की महान सफलता और उसके द्वारा कमाई का इतिहास रचने की खबरें पढ़-सुन चुके हैं. लेकिन आइए ‘हक की बात इर्शादुल हक के साथ‘ में हम शाह रुख खान स्टार्र मूवी Pathaan और Shah Rukh Khan के सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में ऐतिहासिक प्रभाव की चर्चा करते हैं.
12 दिसम्बर 2022 को फिल्म का गाना बेशर्म रंग रिलीज होता है. कुछ ही घंटों में नफरती ब्रिगेड, जो दर हकीकत संघ-भाजपा परिवार का आईटी सेल है, इस गाने के खिलाफ नफरत की ज्वाला भड़काने को कूद पड़ा. भाजपा के कद्दावर नेता, मंत्री और सांसद तक इस मुहिम में जुट गये.
उच्च राजनीतिक पद पर बैठे लीडर नरोत्तम मिश्रा ने Pathan के खिलाफ मुहिम का आगाज करते हुए कहा कि “आपत्तिजनक वेशभूषा वाले दृश्य न हटाए जाने पर यह विचार किया जाएगा कि एमपी में यह फिल्म रिलीज होगी कि नहीं”.
Narottam Mishra, भाजपा शासित राज्य मध्य प्रदेश के गृह मंत्री हैं. उन्होंने नफरती सियासत के जहर को अपने पॉलिटकिटकल डोमेन में यह नैरेटिव फैला दी कि बेशर्म रंग गीत में दीपिका पादुकोण ने भगवा रंग की बिकनी पहन कर हिंदू भावनाओं को आहत किया है.
नफरती गैंग हुआ पस्त
भगवा रंग को धार्मिक भावना से जोड़ना, दर असल मुस्लिम शाह रुख खान के खिलाफ नफरत का माहौल पैदा करने की रणनीति थी. मिश्रा के इस बयान के बाद ‘बॉयकॉट पठान’, ‘बॉयकाट शाह रुख खान’ ‘ बॉयकाट बॉलिउड ‘ जैसे हैशटैग ट्वीटर पर तैरने लगे. देखते ही देखते विश्व हिंदू परिषद की चर्चित सदस्य और नफरती बोल के लिए कुख्यात साध्वी प्राची ( Sadhvi Prachi) ने तो मोर्चा ही खोल दिया. तीन हफ्ते तक प्राची ने पठान और शाह रुख खान के खिलाफ निचले स्तर तक जा कर ट्वीट अभियान छेड़े रखा. शाह रुख को गद्दार और न जाने क्या क्या न कहा. इस अभियान को देश भर के संघी-भाजपाई आईटी सेल ने जोरदार तरीके से हवा दी. दूसरी तरफ गोदी मीडिया भी इस हेट मिशन को खूब भुनाया. प्राइम टाइम डिबेट में नफरत को खूब हवा दी. बजरंग दली अतिवादियों ने सिनेमा थियटरों में तोड़-फोड़ शुरू कर दहशत फैलानी शुरू की. गुजरात के अलावा असम के गोाहीटी के थियटर में हिंसा की गयी ताकि पठान के फैंस में डर का माहौल उत्पन्न हो. इस मुद्दे पर जब भाजपा शासित असम के चीफ मिनिस्टर हिमंता विस्वा सर्मा से पूछे गया तो अपनी प्रतिक्रिया से उन्होंने परोक्ष रूप से नफरती ब्रिगेड़ का मनोबल बढ़ाते हुए कहा शाह रुख खान कौन है. न मैं पठना फिल्म को जानता हूं न शाह रुख को. इस नफरती अभियान से लगने लगा था कि कहीं ऐसा न हो कि पठना का वही हस्र हो जाये जो आमिर खान की मूवी लाल सिंह चड्ढा की हुई. लाल सिंह चड्ढा के खिलाफ नफरती ब्रिगेड ने जोरदार अभियान चलाया था. वह मूवी फ्लॉप हो चुकी थी. इससे नफरती गैंग का हौसला बुलंद था.
आत्म विश्वास से लबरेज
दूसरी तरफ शाह रुख ऐसी स्थितियों के लिए पूरी तरह से तैयार थे. साथ ही आत्मविश्वास से भरे थे. उनके आत्म विश्वास की झलक उनकी इस प्रतिक्रिया से समझी जा सकती है. उन्होंने एक पत्रकार को दिये साक्षात्कार में कहा था- “मैं हवा से थोड़ी न हिलने वाला हूं. हा.. हा.. हवा से झाड़ियां हिलती हैं”.
नफरती गैंग के अभियान को देखते हुए शाह रुख ने अपनी फिल्म के प्रोमोशन की पूरी रणनीति ही बदल दी. उन्होंने सुनिश्चित किया कि फिल्म का विज्ञापन न टीवी पर चलेगा न अखबारों में. ऊपरी तौर पर यह रिस्क का गेम था. लेकिन रिस्क लेना शाह रुख की आदत का हिस्सा है. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दो रणनीति अपनाई. एक- कतर के फीफा वर्लड कप को चुना. तब फीफा वर्लड कप का खुमार पूरी दुनिया पर छाया था. उसके आवार्ड सेरेमनी में दीपीका पादुकोण( पठान की कोस्टार) के साथ पहुंचे. वहां उन्हें विशेष आमंत्रण मिला. और पूरी दुनिया में महज एख ईवेंट से पठान की पापुलरिटी बढ़ गयी. दूसरा अवसर उन्हें दुबई के बुर्ज खिलाफ पर फिल्म का ट्रेलर रिलीज करने को मिला. इस आयोजन ने पठान को अंतरराष्ट्रीय प्रोमोशन का शानदार बेनिफिट मिला. जो आगले दिनों में अंतराराष्ट्रीय जगत में पठान की कमाई के रूप में देखने को मिला.
बदल डाली प्रोमोशन की पारम्परिक रणनीति
इधर भारत में शाह रुख की बदली रणनीति यह थी कि उन्होंने किसी मीडिया या माध्यम के द्वारा अपनी बात कहने के बजाये सीधे अपने फैन्स तक पहुंचने का फैसला लिया. उन्होंने और उनकी टीम ने ट्वीटर पर अभियान छेड़ा. फिल्म रिलीज होने से पहले तीन-चार बार शाह रुख ने #AskSRK के तहत सीधे अपने फैंस से बातें की. उनके सवालों का जवाब दिया. शा रुखेक इस अभियान ने तूफान नहीं, बल्कि सुनामी मचा दिया. नतीजा यह हुआ कि #ShahRukhKhan, #HindustanDekhegaPathaan, #AdvanceBookingOfPathan जैसे हैश टैग तीन हफ्ते तक टॉप ट्रेंड बना रहा. लाखों लोग इन हैशटैग को ट्वीट, रिट्वीट करते रहे. नतीजा यह हुआ कि नफरती गैंग मनोवैज्ञानिक लड़ाई हारने लगा. शाह रुख के करोड़ों दीवानों ने शाह रुख खान फैंस क्लब बना कर ट्वीटर पर आंधी मचाने लगे. इस भयंकर ट्वीटर ट्रेंड को सबसे पहले गोदी मीडिया ने भांप लिया. कल तक जो गोदी मिडिया अपने डिबेट में पठान के खिलाफ नफरत भड़का रहे थे वे अपने रुख बदलने लगे. फिल्म और शाह रुख खान की अदाकारी और मूवी के गाने की लोकप्रियता के कसीदे पढ़ने लगे. उधर मूवी के गीत बेशर्म रंग को तीन हफ्ते में डायरेक्ट 30 करोड़ लोगों ने देख कर रिकार्ड बना दिया. दूसरी तरफ नरोत्तम मिश्रा जैसे जिम्मेदार मंत्री अपनी औकात में आने लगे. रहा-सहा कसर साध्वी प्राची जैसे नफरती को शाह रुख खान के हजारों फैंस ने ट्वीटर पर ईंट के बदले पत्थर से जवाब देना शुरू किया. अगर आप प्राची के ट्वीटर हैंडल पर देखें तो जान जायेंगे कि तिवार, शर्मा, मिश्रा सरनेम वालों ने ही प्राची को नफरत फैलाने वाली और यहां तक की देशद्रोही तक कहना शुरू कर दिया.
किस्सा मुख्तसर यह कि शाह रुख के फैंस ने नफरतियों की ईंट से ईंट बजा दी. उधर शाह रुख के फैंस में देश विदेश में ऐसी दीवानगी छाई कि असम के गृहमंत्री को अपना पैंतरा बदलना पड़ा. कौन है शाह रुख कहने वाले हिमंता बिसवा सर्मा ने ट्वीट कर श्री शाह रुख खान की फिल्म पठान के प्रदर्शन के दौरान कानून व्यवस्था बनाये रखने की सफाई देनी पड़ी. शाह रुख के नाम की आंधी इतनी तीव्र थी, कि खुदनरें द्र मोदी की अनुभवी आंखों ने इस देख और महसूस कर लिया. मोदी को अपनी पार्टी के नेताओं को कहने के लिए मजबूर होना पड़ा कि हमें किसी फिल्म पर नकारात्मक टिप्पणी से बचना चाहिए.
तोड़े रिकार्ड, रचा इतिहास
फिल्म ने केजीएफ 2, बाहुबली जैसी फिल्मों को पछाड़ डाला.पठान की डिमांड को देखते हुए देश के बंद पड़े दो दर्जन से ज्यादा थियटर फिर से खुल गये. एडवांस बुकिंग के सारे रिकार्ड टूट गये. देश की पहली फिल्म बनी जिसे देश विदेश में 8500 थियटर्स में दिखाया गया. महज चार दिन में चार सौ करोड़ से ज्यादा की कमाई हो गयी.
पठना ने हिंदू-मुस्लिम की जगह देश को एक नया डिसकोर्स दे दिया. पठान ने करोड़ों लोगों में नफरत की जगह मुहब्बत का पैगाम दे दिया. पिछले आठ वर्ष के मोदी कार्यकाल में यह पहला अवसर था जब किसी व्यक्ति की लोकप्रियता ,( शाह रुख खान) की मुहब्बत लोगों के सर पर चढ़ के गूंजने लगी. दर असल शाह रुख ने वह कर दिखाया, जो आठ वर्षों में कोई सेक्युलर राजनीतिक दल नहीं कर सका.