शंकराचार्य ने कर दिया बड़ा खुलासा, सकते में भाजपा
शंकराचार्य ने कर दिया बड़ा खुलासा, सकते में भाजपा। बोले हम आमंत्रण ठुकरा नहीं रहे, बल्कि हमें किसी ने आमंत्रित ही नहीं किया। लोग चकित। जानिए और क्या कहा-
अब तक माना जा रहा था कि अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के लिए शंकराचार्यों को आमंत्रित किया गया, लेकिन उन्होंने आमंत्रण ठुकरा दिया। जबकि सच्चाई यह है कि जिसे भाजपा हिंदुओं का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक कार्यक्रम बता रही है, उसमें हिंदुओं के सबसे बड़े धर्माचार्य को बुलाया ही नहीं गया। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कल द वायर से बात करते हुए बड़ा खुलासा किया। उन्होंने पहली बार बताया कि इतने बड़े आयोजन में उन्हें पूछा ही नहीं गया। उनके इस खुलासे के बाद यह और भी स्पष्ट हो गया है कि अयोध्या का राममंदिर उद्घाटन पूरी तरह राजनीतिक कार्यकम है।
#Religion | 'It's Divided, Not United India': Shankaracharya of Jyotish Peeth on #RamTemple
— The Wire (@thewire_in) January 15, 2024
Swami Avimukteshwaranand Saraswati speaks with Karan Thapar and explains how he views the Prana Pratishtha of the Ram Lalla murti in #Ayodhya on Jan 22.#Watch: https://t.co/2G7HLnjHZT pic.twitter.com/qnL9IzhChJ
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि राममंदिर के उद्घाटन से पहले किसी ने उनसे कोई चर्चा नहीं की। उन्होंने बताया कि क्यों अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा को शास्त्र गलत मानते हैं। उन्होंने हर बारीकी साझा की। बताया कि मंदिर में जो भगवान की प्रतिमा होती है, वह दरअसल भगवान की आत्मा होती है। पूरा मंदिर भगवान का शरीर होता है। मंदिर का शिखर भगवान का सिर होता है। शिखर के ऊपर जो ध्वज लगाया जाता है, वह भगवान के केश होते हैं।
जब उनसे पूछा गया कि भाजपा के लोग कह रहे हैं कि मंदिर का गर्भगृह बन गया है, तो मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा क्यों नहीं हो सकती। इस पर शंकराचार्य ने कहा कि गर्भगृह का क्या मतलब होता है। इसका मतलब है कि भगवान का जन्म अभी हुआ नहीं है। जन्म होने में नौ महीने लगते हैं। अगर मंदिर पूरी तरह निर्मित होने से पहले ही प्राण प्रतिष्ठा की जाती है, तो इसका अर्थ होगा कि हम विकलांग स्वरूप में प्राण प्रतिष्ठा कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि नरसिम्हा राव की सरकार के कार्यकाल में भी कमेटी बनी थी, लेकिन उन्होंने खुद कमेटी नहीं बनाई। धर्माचार्यों से कहा कि आपका मामला है। आप कमेटी बनाएं। कमेटी बनी, जिसमें धर्माचार्य थे। बाद में मोदी सरकार ने उस कमेटी को कतिनारे कर के एक नई कमेटी बना दी और कार्यकर्ताओं को कमेटी में रख लिया। धर्माचार्यों को बाहर कर दिया। यह राजनीतिक हस्तक्षेप है। सबको अपनी सीमा में रहना चाहिए। हम राजनीति में हस्तक्षेप करें, तो वह गलत होगा। हम अपनी सीमा जानते हैं। उसी तरह राजनीतिक दलों को भी धर्म के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
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