शपथ से पहले जगजीवन राम के समाधि स्थल पर पहुंचे खड़गे
मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस अध्यक्ष पद की शपथ ली। मीडिया दिन भर नए-नए सवाल पूछ रहा है। खड़गे शपथ से पहले जगजीवन बाबू के समाधि स्थल पहुंचे।
कुमार अनिल
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से कभी मीडिया ने सवाल नहीं किया कि वे पार्टी में लोकतंत्र बहाल करने के लिए क्या कर रहे हैं, लेकिन यही सवाल कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से पूछा जा रहा है। मीडिया ने सवालों और चुनौतियों की बौछार कर दी है। इस बीच बुधवार को कांग्रेस अध्यक्ष पद की शपथ से पहले खड़गे महात्मा गांधी, नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के समाधि स्थल पर पहुंचे और उन्हें श्रद्धांजलि दी। लेकिन वे यहीं तक नहीं रुके। वे बाबू जगजीवन राम के समाधि स्थल पर भी पहुंचे और उन्हें अपनी श्रद्धांजलि दी।
बाबू जगजीवन राम स्वतंत्रता सेनानी रहे। आजादी के बाद पहली सरकार में वे श्रम मंत्री रहे। बाद में कई मंत्रालयों को संभाला। 1977 में वे कांग्रेस से अलग हो गए तथा कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी का गठन किया। 1979 में वे भारत के उप-प्रधानमंत्री बने। इस तरह वे जीवन के अंतिम समय में कांग्रेस से अलग हुए, पर उनकी राजनीति वही रही। लोकतंत्र, संविधान, वंचितों का उत्थान ही उनकी उनकी राजनीति के केंद्र में रहा। वे बिहार के सासाराम से चुनाव जीतते रहे। आंबेडकर के बाद वे अपने समय में देश के दूसरे सबसे बड़े दलित नेता थे। उनकी बेटी मीरा कुमार लोकसभा की अध्यक्ष रह चुकी हैं।
खड़गे ने बाबू जगजीवन राम के समाधि स्थल पर श्रद्धांजलि देकर जरूर देके दलितों को एक संदेश देने की कोशिश की है। देखना है, वे दलितों के बीच कितनी पहुंच बना पाते हैं।
इधर मीडिया में दिन भर खड़गे छाए रहे। सोशल मीडिया में भी वे ट्रेंड करते रहे। देश के मीडिया ने खड़गे पर सवालों की बौछार कर दी है। उनसे पूछा जा रहा है कि वे कांग्रेस में लोकतंत्र कैसे स्थापित करेंगे, कहीं वे गांधी परिवार की कठपुतली तो नहीं बन जाएंगे, रबर स्टांप तो नहीं बन जाएंगे आदि-आदि। पर यही सवाल कभी मीडिया ने भाजपा या किसी दूसरे दल के अध्यक्ष से नहीं पूछे। कोई जेपी नड्डा से नहीं पूछता कि वे खुद निर्णय लेते हैं या कोई और निर्णय लेता है।
ध्यान रहे जेपी नड्डा चुनाव से भाजपा अध्यक्ष नहीं बने। उनका मनोनयन हुआ। कहां से उनका नाम आया यह भी किसी को पता नहीं। अब उनका कार्यकाल 2024 तक के लिए बढ़ा दिया गया। किस कमेटी ने कार्यकाल बढ़ाया, किस आधार पर बढ़ाया, कितने लोगों की सहमति थी, किसी को पता नहीं।
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