जम्मू-कश्मीर एवं राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस. एन. झा ने समाज के अंतिम व्यक्ति तक न्याय सुलभ कराने की आवश्यकता पर बल देते हुये आज कहा कि इसके लिए मध्यस्थता प्रणाली का अधिक से अधिक लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए।
न्यायमूर्ति झा ने आत्मबोध एवं अद्योपंत लीगल की ओर से ‘सबको न्याय सुलभ कराने में मध्यस्थता की भूमिका’ विषय पर विधि पत्रकारों के लिए आयोजित कार्यशाला का उद्घाटन करने के बाद कहा कि आम लोगों के लिए न्याय सुलभ कराना अति महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मध्यस्थता प्रणाली का अधिक से अधिक लाभ उठाना चाहिए।
पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आम लोगों को आसानी से न्याय नहीं मिल पाने से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की प्रतिष्ठा पर भी असर पड़ता है। इस स्थिति में सुधार लाने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाये जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि मध्यस्थता में न्यायालय की जटिल प्रक्रिया नहीं होती है और लोग आसानी से न्याय पा सकते हैं।
इस मौके पर पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एवं कार्यशाला के विशेष अतिथि न्यायमूर्ति ए. के. उपाध्याय ने कहा कि मध्यस्थता की प्रक्रिया की सफलता के लिए मध्यस्थ की विश्वसनीयता का कायम रहना जरूरी है। पक्षकार का मध्यस्थ पर विश्वास होना चाहिए तभी उनमें उसके निर्णय को स्वीकार करने की इच्छा होगी। इसके लिए प्राचीन काल में प्रचलित ‘पंच परमेश्वर’ की परंपरा को फिर से विकसित किये जाने की आवश्यकता है।
न्यायमूर्ति उपाध्याय ने कहा, “सभी तक न्याय की आसान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए विवादों का निपटारा करने के लिए पंच परमेश्वर की तरह पुरानी प्रणाली को फिर से शुरू करना काफी मुश्किल काम है। आम लोगों को आसानी से न्याय तभी मिलेगा जब उन्हें विश्वास हो जाये बहाल किया गया मध्यस्थ ‘पंच परमेश्वर’ की तरह निष्पक्ष है। इस स्थिति में लोगों को अपील के बाद अपील करने की जरूरत नहीं होगी।”
केंद्र सरकार के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एस. डी. संजय ने कहा कि न्याय के लिए मध्यस्थता प्रणाली की सफलता में मध्यस्थ की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि आमतौर पर उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश ही मध्सस्थ होते हैं और यह देखा गया है कि उन्हें मध्यस्थता की पूरी प्रक्रिया में अधिक रूचि नहीं होती है। यह भी देखा गया है कि इस दौरान उनका व्यवहार न्यायालय में नियमित कामकाज की तरह होता है।
श्री संजय ने मध्यस्थता की न्यायिक प्रणाली में पुराने जमाने की तरह ज्यूरी को फिर से शुरू करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि इस ज्यूरी में विधि, वाणिज्य, इंजीनियरिंग और मीडिया क्षेत्र के विशेषज्ञों को शामिल किया जा सकता है ताकि यह प्रभावशाली और विश्वसनीय बन पाए।