सामंतवादी अहंकार जब सर चढ़ के बोलता है तो महिला या पुरुष की तमीज तो छोड़िये, इंसानियत का पाठ भी भूल जाते हैं लोग. इस फिहरिस्त में एक नया नाम है Sadhna SIngh का.
सामंतवादी अहंकार जब सर चढ़ के बोलता है तो महिला या पुरुष की तमीज तो छोड़िये, इंसानियत का पाठ भी भूल जाते हैं लोग. इस फिहरिस्त में एक नया नाम है Sadhna Singh का.
साधना भाजपा की विधायकिा हैं. मुगलसराय के चंदौली का प्रतिनिधित्व करती हैं. उन्होंने जब एक सभा को संबोधित करते हुए बसपा प्रमुख मायाती की तूलना हिजड़ा से की.
नारी के नाम पर उन्हें कलंक बताया. यही नहीं, यहां तक कहा कि मायावती अपने लाभ के लिए अपने सम्मान की गिरवी रखने वाली महिला हैं जो नारी जाति के लिए एक कलंक है. साधना की बदतमीजी इतने पर खत्म नहीं हुई.
उन्होंने मायावती के बारे में हिजड़ा शब्द दोहराते हुए कहा कि वह ना तो मर्द जैसी दिखती हैं और ना ही औरत जैसी. वह हिजड़ा हैं.उन्होंने शनिवार को चंदौली की एक सभा में कहा- मायावती न महिला हैं न पुरुष। वे किन्नर से भी बदतर हैं। उन्होंने लखनऊ के गेस्ट हाउस कांड का नाम लिये बिना यहां तक कहा कि जिस महिला का ब्लाउज फट जाये, पेटीकोट फट जाये उसकी अस्मिता क्या बची और वह सत्ता के लिए, वर्चस्व के लिए फिर वैसे ही लोगों से समझौता कर ले.अपना चीरहरण भूलकर सपा से गठबंधन किया है.
इस पूरे मामले में महिला अस्मिता को शर्मशार करने वाली साधना से जब खेद व्यक्त करने को कहा गया तो उन्होंने मना कर दिया और कहा कि मायावती ने अपना सम्मान गिरवी रख दिया है, लिहाजा उन्हें अपने कहे पर कोई पछतावा नहीं है.
साधना का इशारा मायावती के उस बयान की तरफ था जिसमें उन्होंने 12 जनवरी को सपा से गठबंधन के ऐलान के समय कहा था कि वह गेस्टहाउस कांड को भूल कर सपा से समझौता कर रही हैं. याद रहे कि 1995 में उन्हें सपा के गुंडों ने गेस्टहाउस में उनके साथ मारपीट की थी.
दर असल साधना का यह बयान उनकी बीमार मानसिकता का प्रतिबिंब नहीं है. बल्कि यह तो सामंतवादी अहंकार है जो इस समाज के एक वर्ग में, दूसरे वर्ग के लिए कूट-कूट कर भरा हुआ है. साधना ने साबित किया है कि यह सामंती अहंकार महिलाओं में भी है.
साधना के इस बेहद अमर्यादित बयान के बाद यह कहना कि वह महिला के नाम पर कलंक हैं, सही नहीं होगा. क्योंकि महिलाओं से ही पुरुषों का वजूद है. इसलिए अगर एक महिला ऐसी भद्दी टिप्पणी करे तो उस पुरुष का रवैया कैसे अलग हो सकता है जिसके संस्कारों की छाया में पुरुष पलते हैं.
इस अहंकार का खात्मा असानी से नहीं हो सकता. इसके लिए लोकतांत्रिक तरीके की जरूरत है. ऐसे जनप्रतिनिधियों को लोकतांत्रिक रूप से सबक सिखाने की जरूरत है.
साधना के बयान सामंती बौखलाहट
साधना सिंह क यहे इस बयान के पीछे उनके सामंती अहंकार की बौखलाहट है. 12 जनवरी को मायावती ने गेस्टहाउसकांड को भुलाने की घोषणा करते हुए सपा से गठबंधन करने का ऐलान किया. उनके इस ऐलान से भाजपा में खलबली मची है. इसका स्वाभाविक असर साधना के राजनीतिक करियर पर पड़ सकता है. क्योंकि पिछली बार यानी 2017 में साधना ने बड़ी मुश्किल से चुनाव जीता था. उनकी टक्कर सपा और बसपा के अलग-अलग प्रत्याशियों से थी. तब वह जीत सकीं थी लेकिन इस बार सपा-बसपा के मिल जाने से उनकी सांसें अट गयी हैं.