Surgical Strike: Son of Mallah मुकेश साहनी एक जहाजी नेता की सियासी औकात की परत-दर-परत जानिए.
[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/06/irshadul.haque_.jpg” ]Irshadul Haque, Editor, naukashahi.com[/author]
कुछ लोग अपने संघर्षों से नेता बनते हैं. कुछ को विरासत में नेतागिरी मिलती है और कुछ ऊपर से अपने धनबल के सहारे टपक पड़ते हैं. अपने संघर्षों से नेता बनने का माद्दा सबके पास नहीं होता. उन्हें समय की भट्टी में तपना पड़ता है. अभाव और जद्दोजहद के बावजूद मछली आंख में निशाना साधे रहना पड़ता है. फिर लम्बे संघर्ष के बाद उन्हें अवसर मिलता है. लिहाजा ऐसे नेता का नेतृत्व चिरकालिक हो जाता है.
जबकि विरासत में मिली सियासत के कर्णधारों के पास एक प्लस प्वाइंट यह होता है कि उन्हें अपनी विरासत खोने का भय रहता है. सो, ऐसे नेता को अपनी कर्मठता और उपादयता सिद्ध करनी होती है. और इन्हीं चुनौतियों के पेशे नजर वह अपनी उपयोगिता सिद्ध करके अपनी नेतृत्व क्षमता को या तो मनवा के दम लेते हैं या फिर हाशिये में गुम हो जाते हैं.
तीसरी कटेगरी के वे नेता होते हैं जिन पर अथाह धन के बूते नेता बनने का जुनून सवार हो जाता है. खुद को ‘Son Of Mallah’ कहलवाने की हसरत रखने वाले मुकेश साहनी इसी तीसरी कटेगरी के व्यक्ति हैं.
2013-14 में अचानक बिहार के तमाम हिंदी-अंग्रेजी अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर अपने चेहरे के साथ फुल कलर विज्ञापन छपवा कर सबकी नजरें अपनी ओर खीचने वाले मुकेश ने जाहिरी तौर पर फराखदिली दिखाई थी. लाखों रुपये के इस विज्ञापनी नेतागिरी के अलावा उन्होंने संघर्ष का रास्ता नहीं चुना. जाहिर है पैसे की शक्ति से नेता बनने का सपना उनके लिए आसान था. सो ऐसा किया.
Son Of Mallah एक कागजी नेता
विज्ञापनी शक्ति से अखबारों में छा जाने की उनकी इस कोशिश का नतीजा वही हुआ जो अकसर होता है. बेरोजगार युवाओं की भीड़ उनकी तरफ दौड़ पड़ी. किराये की मोटरसाइकिलों पर सवार बेरोजगार उनके साथ सड़कों पर आ धमके. प्रदर्शन किया. जुलूस निकाले. इस सन ऑफ मल्लाह के सलाहकारों ने यह भी समझा दिया कि प्रदर्शन के दौरान अगर पुलिस से भिड़ंत हो जाये तो अखबारों में सुर्खियां बटोरी जा सकती हैं. लिहाजा 2015 के सितम्बर में पुलिस पर पथराव किया गया. गुस्साई पुलिस ने फिर उन्हें और उनके साथियों को खूब कूटा. ‘सन ऑफ मल्लाह’ चर्चा में आ गया.
अब मुकेश साहनी के लिए अगला निशाना था- सियासत के शीर्ष पर बैठे नेताओं से निकटता बनाना. जिस सत्ता के खिलाफ प्रदर्शन किया था उसी के सरण में जा धमके मुकेश. नीतीश से मुलाकात हुई. तय हुआ कि वह जदयू को समर्थन करेंगे. इसी बीच वह भाजपा के शीर्ष नेताओं से भी अपनी गोटी बिठाते रहे. गोटी बैठ भी गयी. और जदयू के समर्थन की कसमें खाने के महज 20 दिन बाद उन्होंने अपनी वफादारी बदल ली. और भाजपा के खेमे में जाने का ऐलान कर दिया. तर्क दिया- ‘आगे बड़ी लड़ाई है, एनडीए में भलाई है’. इसी भलाई के चक्कर में वफादारी का अचानक बदल जाना कुछ यूं ही नहीं हुआ. भाजपा के शीर्ष नेताओं के साथ तय हुआ कि मुकेश भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ मंच साझा करेंगे. इसके लिए हेलिकॉप्टर से दौरा होगा. हालांकि इस बात का मेरे पास कोई प्रमाण नहीं कि मुकेश ने हेलिकॉप्टर से दौरे का आफर अमित शाह को दिया या अमित शाह ने भाजपा के खाते से हेलिकाप्टर का खर्च वहन करने की बात तय की.
[divider]
हेलिकॉप्टर से दौरा करेंगे Son Of Mallah
[divider]
पर साधारण बुद्धि भी यही कहती है कि जिस मुकेश साहनी के पास सियासत की जमीनी पकड़ के नाम पर नील बटा सन्नाटा हो, उन्हें अमित शाह अपने संग लिए उड़े होंगे.
जहाजी नेता होने का लाभ
अकसर सियासत में धनशक्ति, जनशक्ति पर हावी हो जाती है. मुकेश के साथ भी वही हुआ . वरना बिना जमीनी संगठन और बिना किसी राजनीतिक पहचना के एक राष्ट्रीय पार्टी का राष्ट्रीय नेता अपने संग चुनावी सभा में हिलिकॉप्टर पर लिए क्यों फिरता?
[divider]
NDA ने छोड़ा Son Of Mallah के लिए एक सीट
[divider]
हालांकि मुकेश की जमीनी औकात का पता भाजपा वालों को 2015 के विधानसभा चुनाव बाद चल ही गया, जब मुकेश, बकौल भाजपा नेताओं के, मलाहों का वोट नहीं दिला पाये. 2019 के लिए लोकसभा सीटों के बंटवारे के दौरान एनडीए में मुकेश पर जब बात चली तो यह चर्चा भी सामने आयी कि हेलिकाप्टर की सवारी करने के लिए उन पर बाजी लगाना जोखिम भरा है.
हवाई जहाज का रुत्बा काम न आया
हालांकि मुकेश द्वारा दिल खोल कर 2015 में खर्च करने का भरम रखते हुए एनडीए ने उनके लिए एक सीट देने का मन बनाया था. पर इसी बीच मुकेश ने राजद से नजदीकी बढ़ा ली. शायद राजद को यह लगा कि जो भी मुकेश को एनडीए के पाले से अपनी तरफ खीच लेना ही उसकी मनोवैज्ञानिक बरतरी होगी.
भले ही मुकेश यानी सन Son Of Mallah ने बीते अक्टूबर में विकासशील इंसान पार्टी का गठन कर लिया है. पर सच्चाई यह है कि मुकेश कोई राजनीतिक रसूख रखने वाले नेता हैं नहीं. विकासशील इंसान पार्टी ( VIP) वन मैन पार्टी के सिवा कुछ नहीं है. मुकेश के फालोअर्स के नाम पर वही कुछ बेरोजगार हैं जो मुकेश के खास करीब हैं.
राजद रहे सावधान
मैं समझता हूं कि राजद के नीति निर्माताओं को इस बात की भलिभांति जानकारी है. फिर भी राजद ने मुकेश को महागठबंधन का हिस्सा इसलिए बनाया क्योंकि उसकी पहल प्राथमिकता, भाजपा को विकासशील इंसान पार्टी के नाम पर एक गठबंधन सहयोगी से वंचित करना थी. वैसे महागठबंधन को इस बात के लिए भी सचेत रहने की जरूरत है कि जो मुकेश 20 दिन में नीतीश कुमार से वफादारी बदल कर भाजपा के संग जा सकते हैं और फिर भाजपा से अचानक महागठबंधन में आ सकते हैं, वह कभी भी पैंतरा बदल कर महागठबंधन को बॉय-बॉय कर सकते हैं.
हां अगर मुकेश इस बात के लिए तैयार हो जायें कि वह अपनी पार्टी का विलय राजद में कर लें तो यह राजद के लिए ज्यादा अच्छी बात होगी.