नौकरियां ही नहीं, टीम तेजस्वी के सोशल जीनियरिंग से भी बेचैन है NDA

अमरनाथ गामी, विनोद मिश्र, अनंत सिंह सरीखे नेताओं के बूते राजद का सोशल इंजीनियरिंग
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Irshadul Haque, Editor naukarshahi.com

आज से छह महीने पहले तेजस्वी यादव ने जब कहा था कि उनकी पार्टी ए टुजेड की पार्टी है, तब कुछ राजनीतिक समीक्षकों को अटपटा सा लगा था. क्योंकि RJD मुख्य रूप से पिछड़ों, अल्पसंख्यकों व दलितों की पार्टी समझी जाती थी. पिछले लोकसभा व विधान सभा चुनाव तक तो राजद में अगड़ों के लिए लिमिटेड स्पेस तो था ही, भूमिहार जाति से एक भी उम्मीदवार इस दल ने नहीं दिया था. लेकिन तेजस्वी के नेतृत्व वाले राजद ने, लालू प्रसाद के सामाजिक न्याय के दायरे का विस्तार करते हुए अगड़े समाज के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करके भाजपा जदयू के खेमें में खलबली मचा दी है.

सोशल जस्टिस से सोशल इंजीनियरिंग की ओर

कोई डेढ़ साल पहले तेजस्वी ने घोषणा की थी कि उनके संगठन और यहां तक कि टिकट वितरण में भी तमाम वर्गों की नुमाइंदगी को सुनिश्चित किया जायेगा. इसी रणनीति के तहत राजद ने पहली बार अत्यंत पिछड़ा वर्ग से 21 उम्मीदवारों को रण में उतार दिया है तो दूसरी तरफ ब्रहम्ण, भूमिहार व राजपूत उम्मीदवारों पर भी दिल खोल कर दाव खेला है. ऐसा करते हुए टीम तेजस्वी ने अगड़े समाज के मजबूत जनाधार वाले नेताओं को, भारतीय जनता पार्टी के पाले से खीच कर अपने पाले में किया. उन्हें टिकट दिया.

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अगड़ी जाति में भूमिहार समाज के अनंत सिंह को मोकामा से रण में उतार कर बड़ी संख्या में भूमिहार युवाओं की सहानुभूति बटोरने की कोशिश राजद ने की.

भाजपाई किले में सेंध

दूसरी तरफ आरएसएस बैकग्राउंड के भाजपा विधायक रहे अमरनाथ गामी को राजद ने आखिरी लम्हे में अपने पाले में कर लिया. हयाघाट के विधायक रहे गामी को भाजपा ने टिकट देने से मना कर दिया था. राजद ने उन्हें दरभंगा नगर सीट से मैदान में झोंक दिया. गामी बनिया समाज से आते हैं. बनिया समाज के बारे में कहा जाता है कि वह भाजपा का कोर वोटर है. गामी फिलवक्त दरभंगा से मजबूत कंटेडर बन कर उभरे हैं. उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से दावा किया है कि वहां से भाजपा उम्मीदवार के पास केवल भाजपा का चुनाव चिन्ह है. जबकि उनके साथ भाजपा का पूरा संगठन है. राजद का ‘गामी प्रयोग’ भाजपा के लिए बड़े सरदर्द का कारण बन चुका है.

इसी तरह राजद के गढ़ रहे अलीनगर विधान सभा सीट से राजद ने अपने मौजूदा विधायक अब्दुलबारी सिद्दीकी को दूसरे क्षेत्र में शिफ्ट करते हुए विनोद मिश्रा को मैदान में उतारा है. विनोद मिश्रा जन्मजात भाजपाई रहे हैं. वह भाजपा के जिलाध्यक्ष भी रह चुके हैं. मिश्रा मैथिल ब्रह्मण हैं. मैथिल ब्रहम्णों के इस डिस्कोर्स को राजद ने विराम लगा दिया है कि मैथिल ब्रह्मणों के लिए इस पार्टी में कोई जगह नहीं. विनोद मिश्रा के मजबूत संगठनकर्ता हैं और जमीन पर उनकी मजबूत पकड़ का नतीजा है कि अलीनगर में भाजपाई समीकरण ध्वस्त भी हो सकता है.

इसी तरह राजपूत समाज के रमेश कुमार को राजद ने बाहदुरपुर से मैदान में उतारा है. रमेश कुमार भी मूलरूप से भाजपाई रहे हैं. रमेश इंडियन एक्सप्रेस से दावा करते हैं कि राजद में उनके शामिल होने के बाद ‘एम-वाई’ समीकरण में एक नये अक्षर ‘आर’ का इजाफा हुआ है.

ऊपर हमने राष्ट्रीय जनता दल के सोशल इंजीनियरिंग के दायरे के विस्तार में जिन प्रत्याशियों का जिक्र किया है वे भाजपा के पारम्परिक व कोर वोटर समूह के प्रतिनिधि चेहरे हैं. 2020 विधानसभा चुनाव में टीम तेजस्वी के इस नये प्रयोग ने भाजपा की नींद उड़ा रखी है. इसलिए यह कहना है कि तेजस्वी की रैलियों में उमड़ती भीड़ महज दस लाख नौकिरयों के वादे के आकर्षण से जुट रही है. दर असल यह भीड़ राजद के कोर वोटर्स- यादव, मुस्लिम से इतर अत्यंत पिछड़ा, दलित व अगड़े समाज की भीड़ है. यह भीड़ तेजस्वी से बड़ी उम्मीदें पाल रही है.

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