तेजस्वी का यह मास्टर स्ट्रॉक NDA के होश उड़ाने वाला क्यों है
तेजस्वी ने दस लाख युवाओं को सरकारी नौकरी देने का वादा करके बेरोजगारों के समंदर में उम्मीदों का तूफान मचा दिया है, जबकि मोदी-नीतीश की जोड़ी पर सन्नाटा छा गया है.
नीतीश ने 25 सितम्बर को अचानक कुछ घंटे की मोहलत में प्रेस कांफ्रेंस करके सात निश्चय-2 का ऐलान किया. उसके दो दिन बाद तेजस्वी ने अपने शोधपूर्ण नतीजों का अध्ययन किया और फिर इस मास्टर स्ट्राक के रूप में सियासत के मैदान में पेश कर दिया.
तेजस्वी ने कहा कि सरकार बनने के बाद;पहली कैबिनेट में पहली कलम से दस लाख युवाओं को रोजगार देंगे. यह हमारा कमिटमेंट है. इस हिमालय सरीखे वचनबद्धता को कोई हवाई किला न समझ ले, इसके लिए तेजस्वी ने आंकड़ों, तथ्यों और मजबूत तर्कों से पेश किया. ताकि युवा समझ लें कि तेजस्वी यादव का वादा कोई हवा-हवाई वादा नहीं, बल्कि सत्यता के साथ पूरा किया जाने वाला प्रॉमिस है.
इसके लिए तेजस्वी ने कहा कि चार लाख 50 हजार सृजित पदों पर वैकेंसी पहले से मौजूद है.शिक्षा, स्वास्थ्य, गृह विभाग सहित अन्य विभागों में राष्ट्रीय औसत एव तय मानकों के हिसाब से बिहार में अभी भी 5 लाख 50 हज़ार नियुक्तियों की अत्यंत आवश्यकता है.
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इस तरह तेजस्वी ने वादा करते हुए इस बात को भी तथ्यपरक रूप से रखा कि वह जो वादा कर रहे हैं उसकी बिहार को आवश्यकता है. क्योंकि स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा तय मानक पर बिहार आख़री पायदान पर है। बिहार की आबादी लगभग साढ़े बारह करोड़ है। WHO के स्वास्थ्य मानक के अनुसार प्रति 1000 आबादी एक डॉक्टर होना चाहिए लेकिन बिहार में 17 हज़ार की आबादी पर एक डॉक्टर है। इस हिसाब से बिहार में एक लाख पचीस हज़ार डॉक्टरों की ज़रूरत है। उसी अनुपात में सपोर्ट स्टाफ़ जैसे नर्स,लैब टेक्निशियन, फ़ार्मसिस्ट की ज़रूरत है।सिर्फ़ स्वास्थ्य विभाग में ही ढाई लाख लोगों की ज़रूरत है।
मास्टर स्ट्रॉक
तेजस्वी ने जो वादा किया है. उसकी शिद्दत पर गौर कीजिए. सबसे पहले तो यह कि ये वदा फिलहाल बिहार में तेजस्वी ही कर सकते थे. न तो नीतीश कुमार और न ही नरेंद्र मोदी, इस वादे को कर सकते थे. क्योंकि नीतीश 15 साल से मुख्यमंत्री हैं और उनकी पहचान ठेका पर नौकरी दे कर लोगों को एक चौथाई मानदेय दे कर निपटाने की रही है. जहां तक पीएम मोदी की बात है तो उन्होंने छह साल पहले ही हर साल दो करोड़ लोगों को नौकरी देने का वादा करके अपना सर ओखली में डाल रखा है. रही बात अन्य राजनीतिक दलों की, तो वे इस तरह का साहसिक वादा करने की कुअत ही नहीं रखते क्योंकि उन्हें पता है कि उनके दल का कोई नेता मुख्यमंत्री बन ही नहीं सकता.
अब तेजस्वी के इस वादे के प्रभाव पर गौर कीजिए. पिछले एक डेढ़ साल में बेरोजगारी की स्थिति विकराल हुई है. लॉकडाउन ने लाखों को बेरोजगार किया है. 20-25 लाख तो दिहाड़ी, या निजी संस्थाओं में बिहार से बाहर काम करने वाले बेरोजगार हुए हैं. इसलिए बेरोजगारी की समस्या एक गर्म निहाय के रूप में है. तेजस्वी ने इसी गर्म निहाय पर हथौड़ा मारा है. ऐसे में अगर तेजस्वी के दस लाख नौकरी देने को विधानसभावाइज विश्लेषण करें तो जो तथ्य सामने आते हैं वे बड़ी रोचक हैं- कैसे? 243 विधान सभा क्षेत्रों में औसत 4 हजार 115 बेरोजगारों को इसका लाभ मिलेगा. यानी हर विधान सभा के चार हजार से ज्यादा युवाओं की जिंदगी तेजस्वी के मुख्यमंत्री बनने से संवर जायेगी.
कितना प्रभावी होगा यह वादा
पिछले छह साल के उन्मादी दौर देख चुकी युवा पीढ़ी अब समझती जा रही है कि साम्प्रदायिकता, जातिवाद, खोखला राष्ट्रवाद दर असल, रियल मुद्दे को ध्वस्त करने का हथियार भर है. 2014 के बाद, 2019 में भी युवा पीढ़ी जाने अनजाने इसमें फंस चुकी है. यह पीढ़ी अब बेरोजगारी ही नहीं, बेरोजगारी के परिणाम यानी भुखमरी, फाकाकशी, गुरबत जैसी समस्याओं में गिर चुकी है. अब उसे एक ऐसा लीडर चाहिए जो खोखले नारों में बहकाने के बजाये अपने वादों को पूरा करे. एक युवा होने के नाते तेजस्वी ने इस मर्म को, युवाओं के दर्द को बखूबी समझा है. तभी तो तेजस्वी ने अपने इस हिमालेयायी वादे को करने से पहले पूरा रिसर्च किया है. हालांकि इस वादे के रिसर्च में जो सबसे बड़ी कमी है. वह है इतनी बड़ी आबादी को नौकरी देने के बाद सैलरी जुटाने का क्या रास्ता होगा.
लेकिन यह तय है कि सरकार इस समस्या से निपटने के रास्ते भी खोज निकालेगी.
एक बार और हम इस बात को दोहराना चाहेंगे कि यह वादा, न तो नरेंद्र मोदी कर सकते थे और न ही नीतीश कुमार. सत्ताधारी जनता दल यु से भी विधान सभा में बड़ी पार्टी के नेता होने के नाते यह वादा करने का साहस सिर्फ तेजस्वी ही कर सकते हैं.