टॉप लेवल पर चर्चा, जुलाई बाद किसी भी क्षण नीतीश-तेजस्वी सरकार!
ढाई महीना बाद फिर बिहार की राजनीति सुलगने लगी है। नौकरशाही डॉट कॉम को सत्ताधारी दलों के नेताओं ने बताया जुलाई बाद परिवर्तन हो सकता है। ये है नई चर्चा।
कुमार अनिल
महाराष्ट्र में जिस तरह भाजपा ने शिवसेना को तोड़ दिया और अब उसे खत्म करने पर आमादा है, उसका गहरा असर बिहार की राजनीति पर पड़ा है। नतीजा यह हुआ कि सत्ता के गलियारे में ढाई महीना बाद फिर से परिवर्तन की चर्चा तेज हो गई है। कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति चुनाव के बाद बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की सरकार बन सकती है।
आपको याद होगा ढाई महीना पहले भाजपा में जबरदस्त चर्चा थी कि नीतीश कुमार दिल्ली जाएंगे और बिहार में भाजपा के मुख्यमंत्री होंगे। तब भाजपा के मुख्यमंत्री के बतौर नित्यानंद राय का नाम खुल कर लिया जा रहा था। उसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गियर बदला। वे तेजस्वी यादव के इफ्तार में पैदल ही उनके घर पहुंच गए। कुछ ही दिन बाद तेजस्वी यादव भी नीतीश कुमार के इफ्तार में पहुंच गए। इसके बाद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने अपने बड़े नेता को नीतीश कुमार से मिलने भेजा और घोषणा की कि अगले चुनाव में भी नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे।
इसके बाद से हर मौके पर भाजपा झुकती रही है। जातीय जनगणना पर वह झुकी। अब उसके मंत्री रामसूरत राय द्वारा किए गए तबादलों को सीएम ने रोक दिया। इस पर भी भाजपा चुप ही रही। भाजपा को एहसास है कि नीतीश कुमार कभी भी तेजस्वी यादव के साथ मिल सकते हैं। भाजपा यह भी जानती है कि अगर ऐसा हुआ, तो 2024 लोकसभा चुनाव में उसके लिए बड़ी मुश्किल हो जाएगी।
बिहार की राजनीति में फिर से नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के साथ आने की दो वजहें हैं। पहला, महाराष्ट्र में शिव सेना को जिस तरह भाजपा बर्बाद करने पर तुली है, इससे जदयू को वो दिन याद आ रहे हैं, जब पिछले विधानसभा चुनाव में जदयू को खत्म करने के लिए चिराग पासवान को ऊपर से सहयोग मिल रहा था। महाराष्ट्र में शिवसेना को खत्म करने को इस रूप में भी देखा जा रहा है कि भाजपा अब सिर्फ कांग्रेस मुक्त देश नहीं, बल्कि विपक्षमुक्त देश बनाना चाहती है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि भाजपा 2024 तक विपक्ष को खत्म करना चाहती है, ताकि वह देश को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जा सके। उस समय देश में विपक्ष रहे ही नहीं, ताकि कोई विरोध करनेवाला नहीं रहे।
नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के साथ आने की एक दूसरी वजह जदयू के एक बड़े नेता ने बताई, जो भूमिहार समाज से आते हैं। उन्होंने कहा कि सवर्णों का विरोध लालू प्रसाद से था, न कि तेजस्वी यादव से है। इसका प्रमाण बोचहा उपचुनाव में दिखा, जहां राजद को भूमिहारों का वोट मिला। यह असाधारण बात थी। जदयू नेता ने कहा कि जदयू-राजद एक हो जाए, तो भाजपा लोकसभा चुनाव में दहाई का अंक भी नहीं छू पाएगी। एक दूसरे नेता ने कहा कि भाजपा को सूपड़ा साफ हो जाएगा।
यहां यह भी गौर करनेवाली बात है कि एमआईएम के चार विधायकों को जदयू शामिल कर सकता था, लेकिन उसने कोई प्रयास नहीं किया। वे राजद में शामिल हुए और राजद एक बार फिर से विधानसभा में सबसे बड़ा दल हो गया। उसके 80 विधायक हो गए हैं। सबसे बड़ा दल होने का लाभ अब भाजपा को नहीं मिल सकता।
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