पटना उच्च न्यायालय ने राज्यभर में शिक्षकों की ट्रांसफर-पोस्टिंग पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने राज्य सरकार ने तबादला नीति स्पष्ट करने को कहा है। इसके लिए सरकार को तीन सप्ताह का समय दिया है। कोर्ट ने यह फैसला औरंगाबाद के शिक्षकों की याचिका पर सुनवाई करते हुए दी। याचिका में कहा गया है कि सरकार ने जो नियमावली बनाई और जो आवेदन प्रक्रिया है, दोनों में बड़ा अंतर है। सरकार ने शिक्षकों को गुमराह किया है। कोर्ट के इस निर्णय से शिक्षकों को भारी झटका लगा है, जो तबादले की उम्मीद लगाए बैठे थे। इस बीच राजद ने नीतीश सरकार को घेरते हुए असली वजह बता दी है।
राजद प्रवक्ता चितरंजन गगन ने कहा कि राज्य सरकार को शिक्षा और शिक्षक से भारी नफरत और घृणा है। यही वजह है कि चाहे वह शिक्षक बहाली का मामला हो, उन्हें राज्यकर्मी का दर्जा देने का मामला हो या उनके स्थानांतरण और पदस्थापन का मामला हो, सरकार उसे फंसाये और लटकाए रखने की मंशा से हीं नियमावली बनाती है। जबसे बिहार में एनडीए सरकार बनी तबसे यही होता आ रहा है। यदि तेजस्वी यादव को सत्रह महिने उपमुख्यमंत्री रहने का मौका नहीं मिला रहता तो अबतक शिक्षक बहाली को लेकर शिक्षक अभ्यर्थी आन्दोलन हीं करते रहते। हालांकि उस समय भी बहाली में बाधा उत्पन्न करने के लिए हीं मुख्यमंत्री के स्तर से डोमिसाइल हटाने का निर्णय लिया गया। बीपीएससी के चेयरमैन और शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव तत्कालीन शिक्षा मंत्री के निर्देशों को नजरंदाज करते हुए सीधे तौर पर मुख्यमंत्री सचिवालय से निर्देशित होते रहे और बहाली को फंसाने का प्रयास होता रहा पर तेजस्वी जी के दृढ़ संकल्प ने शिक्षकों की बहाली करने के लिए मुख्यमंत्री जी को मजबूर कर दिया। अब सरकार के सामने बाध्यता है कि बचे हुए पदों पर भी जल्द से जल्द शिक्षकों की बहाली करें। पिछले बहाली में जो अनियमितता की शिकायत आ रही है एसआईटी के द्वारा उसकी जांच कराकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।