उर्दू का विरोध करनेवाले क्या भगत सिंह का भी करेंगे विरोध?
फैबइंडिया ने दिवाली कलेक्शन के प्रचार के साथ जश्न-ए-रिवाज लिखा, तो सोशल मीडिया में उफान आ गया। उर्दू का विरोध करनेवाले क्या भगत सिंह का भी विरोध करेंगे?
फैबइंडिया ने कुछ मॉडल्स को अपने दिवाली कलेक्शन पहने हुए पोस्ट किया, तो सोशल मीडिया में हंगामा हो गया। बॉयकॉट का कैंपन चल पड़ा। मजबूरन फैब इंडिया को जश्न-ए-रिवाज शब्द हटाना पड़ा। इसे भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या ने बड़ा मुद्दा बनाया। सोशल मीडिया में उर्दू के खिलाफ खूब पोस्ट हुए, हालांकि ऊर्दू के खिलाफ पोस्ट करनेवाले दिवाली को फेस्टिवल कह रहे हैं। अंग्रेजी फेस्टिवल से विरोध नहीं है, पर ऊर्दू के जश्न से विरोध है। उर्दू विरोध पर देश के साहित्यकारों-लेखकों ने क्या कहा, आइए देखते हैं।
इतिहासकार अद्वैद ने ट्वीट किया- भगत सिंह अपने आलेख उर्दू या पंजाबी में लिखते थे। अपने भाई कुलतार सिंह को 3 मार्च, 1931 में उन्होंने आखिरी पत्र लिखा, वह उर्दू में था। इंकलाब जिंदाबाद नारे को भगत सिंह ने ही लोकप्रिय बनाया, जिसे उर्दू कवि मौलाना हसरत मोहानी ने रचा था। क्या भक्त भगत सिंह का भी बॉयकॉट करेंगे? अद्वैद ने भगत सिंह का वह उर्दू में लिखा पत्र भी शेयर किया।
दीपेंद्र राजा पांडेय ने तेजस्वी सूर्या का जवाब देते हुए लिखा-ऐसे ही चमन हैं जो कहते हैं कि दीवाली या होली मुबारक़ नहीं कहना चाहिए, ये ‘हमारा’ त्योहार है, हमें दीवाली या होली की शुभकामनाएं ही कहना चाहिए।
लेखिका और पत्रकार मृणाल पांडेय ने ट्वीट किया-(फ़ारसी)जश्न>(अवेस्ता)यस्न>(वैदिक)यज्ञ। और इस तरह आधुनिक कालिदासों ने जश्न शब्द के मूल, संस्कृत के यज्ञ शब्द पर ही कुल्हाड़ा दे मारा ?
उन्होंने एक अन्य ट्वीट में लिखा-
हम तो चाकर राम के पटा लिखो दरबार
‘तुलसी’अब का होयेंगे नर के मनसबदार?
क्या पटा, दरबार और मनसबदार जैसे फारसी शब्दों के साथ प्रयोग किसी दरबार की चाकरी किए बिना “मांग के खइबो, मसीत(मस्जिद) में सोइबो”, की घोषणा करनेवाले आत्मसम्मानी तुलसी के मानस को भी त्यागें? अनपढ़ों को शर्म आनी चाहिए!
लेखक देवदत्त पटनायक ने लिखा-क्या हिंदुत्व कभी स्वीकार करेगा कि गंगा के मैदानों में संस्कृत बोली जाने से 1000 साल पहले हड़प्पा में द्रविड़ भाषाएं बोली जाती थीं?
पत्रकार मिताली मुखर्जी ने लिखा- प्रायः भाषा पर बेतुकी बहस देखती हूं। इसके साथ ही उन्होंने लेखक वरुण ग्रोवर का कथन साझा किया- खड़ी बोली, जिसे हम हिंदी कहते हैं, आज हमारी पहचान है, क्योंकि भेजपुरी, अवधी, ब्रज, बुंदेली, तुर्की, फारसी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं ने इसे सींचा है, बनाया है। दुनिया की हर महान भाषा एक नदी है- चलायमान, उदार। इसे नदी ही रहने दें, अपना व्यक्तिगत तालाब न बनाएं।
तेजस्वी का मछली पकड़ना नीतीश से भिन्न छवि गढ़ने की कोशिश