विधानसभा को अपनी गरिमा का ख्याल नहीं, जनता भगवान भरोसे
बिहार विधानसभा इतनी कमजोर कभी न थी। जब बिहार की जनता के दुख-परेशानी की बात यहां नहीं होगी, तो कहां होगी? चर्चा के बिना शासन में कैसे होगा सुधार?
कुमार अनिल
बिहार विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह ने सदन में कोरोना पर चर्चा कराने से इनकार कर दिया। कहा, इससे बिहार की बदनामी होगी। दुनियाभर के लोकतांत्रित देशों, प्रदेशों में कोरोना पर चर्चा हुई और हो रही है, शासन की कमजोरियों पर न सिर्फ उंगली उठाई जा रही है, बल्कि कई स्वास्थ्य मंत्रियों ने इस्तीफा दिया है।
बात-बात पर वैशाली गणतंत्र का उदाहरण देकर बिहार को महान बताने वाले लोग आज बिहार विधान परिषद और बिहार विधानसभा के रवैये से शर्म महसूस कर रहे हैं। आखिर अब किस मुंह से दुनिया को लोकतंत्र का पाठ पढ़ानेवाला सूबा कहेंगे?
बात सिर्फ कोरोना की नहीं है। बिहार विधानसभा के अध्यक्ष ने कल विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव की उस मांग पर चर्चा तक नहीं कराई, जिसमें उन्होंने जातीय जनगणना की बात की। खुद बिहार विधानसभा ने ही इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से दो-दो बार पारित किया है। बिहार विधान सभा को खुद अपनी गरिमा की ही फिक्र नहीं है, तो वह बिहार की जनता की गरिमा की रक्षा कैसे करेगी?
पिछली बार माननीय विधायकों को विधानसभा के भीतर जिस तरह पीटा गया, वह भी भारत के इतिहास में दर्ज हो गया है। वह भी विधानसभा के वर्तमान स्पीकर विजय कुमार सिन्हा के कार्यकाल में ही हुआ। कार्रवाई के नाम पर सिर्फ दो सिपाही निलंबित किए गए। विपक्ष चाहता है कि सभी दोषियों को सजा मिले, लेकिन स्पीकर ने मामले पर कोई कड़ा रुख नहीं दिखाया है। मजबूर होकर विपक्ष को कहना पड़ा कि कार्रवाई न हुई, तो सदन का बायकाट करेंगे।
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आज बिहार विधानसभा ने देश में एक और रिकॉर्ड बनाया। विधायक हेलमेट पहनकर विधानसभा पहुंचे। यह किसी स्पीकर के लिए अगर चिंता का विषय न हो, तो साफ है, बिहार की जनता भगवान भरोसे है। वह इस विधानसभा पर कैसे भरोसा करे, जो अपने सदस्यों को ही सुरक्षा का भरोसा देने में विफल है?
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