पूर्व IAS मनीष वर्मा ने जदयू की सदस्यता लेकर आज अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत कर दी है। वे लंबे समय से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी रहे हैं और अब वे पार्टी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। उन्हें नीतीश कुमार का वारिस माना जा रहा है।
पूर्व आईएएस मनीष वर्मा ने सरकारी स्कूल से पढ़ाई की। तब सरकारी स्कूलों में आज की तरह बेंच नहीं थी। बच्चे अपने घर से बोरा लाते थे। एक ही बोरे पर बैठना तथा सामने किताबें रख कर पढ़ाई करना। ऐसे ही स्कूल से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की। नालंदा जिले के बिहारशरीफ के सरकारी स्कूल से प्राथमिक शिक्षा पाई। आदर्श स्कूल से मैट्रिक पास की। फिर पटना के साइंस कॉलेज से इंटरमीडिएट किया। इसके बाद आईआईटी, दिल्ली से 1996 में सिविल ब्रांच में बीटेक किया। उसके बाद इंजीनियर के तौर पर जॉब भी किया। फिर वर्ष 2000 में सिविल सेवा में चुन लिए गए। वे ओड़िशा कैडर के आईएएस बने। कई जिलों में जिलाधिकारी के तौर पर काम किया। मनीष वर्मा का पैतृक गांव गया जिले के नीमचकबथानी का बरैनी गांव है। उनके पिता डॉ. अशोक कुमार वर्मा बिहारशरीफ के प्रतिष्ठित डॉक्टर थे और बिहारशरीफ में ही बस गए थे।
मनीष वर्मा 2012 में डेपुटेशन पर पांच साल के लिए बिहार आए। माना जाता है कि नीतीश कुमार ने ही उन्हें बिहार बुलाया। पांच साल पूरा होने के बाद एक साल का विस्तार मिला। 2018 में वापस ओड़िशा जाने के बजाय उन्होंने वीआरएस ले लिया। तभी मान लिया गया था कि नीतीश कुमार उन्हें राजनीति में लाएंगे। उनके लिए एक विशेष पद सृजित किया गया। वे मुख्यमंत्री के परामर्शी के रूप में काम करते रहे। फिर आपदा प्रबंधन विभाग से जुड़े, लेकिन वे मुख्य रूप से नीतीश कुमार के करीबी बने रहे। याद रहे पिछले दिनों विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया था कि बिहार सरकार को एक आईएएस चला रहे हैं।
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वीआरएस लेने के बाद पिछले छह वर्षों से पर्दे के पीछे रह कर काम करने वाले मनीष वर्मा अब जदयू में शामिल हो गए हैं। नीतीश कुमार उन्हें पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी दे सकते हैं। इसी के साथ उन्हें नीतीश कुमार के वारिस के तौर पर देखा जा रहा है। जदयू में संसदीय बोर्ड का पद खाली है। क्या मनीष वर्मा संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाए जाएंगे?