युवाओं के मुद्दे चुनावों से क्यों हो जाते है ग़ायब ?

Zain Shahab Usmani
Columnist, Political Analyst.

बिहार देश का सबसे बड़ी युवा जनसंख्या वाला प्रदेश है लेकिन राज्य की राजनीति पूर्ण रूप से जाति और धार्मिक के आधार पर चलती है. इसी जातिवादी राजनीति का नतीजा है कि चुनाव में युवाओं से जुड़े मुद्दों को महत्व नहीं मिलता।

हमारे देश में डिजिटल इंडिया, कंप्यूटर, टेक्नोलॉजी, रिसर्च और विकास जैसे मुद्दों पर बड़ी-बड़ी बातें करने वाला तबका जाति और धर्म से ऊपर उठकर बात करता तो ज़रूर दिख जाएगा, मगर यही तबका वोट डालते वक्त सारी बातें भूल चुका होता है।

इसके अनेकों उदाहरण आपको विशेषकर उत्तर भारत के दो प्रमुख राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार में देखने को मिल जाएंगे, आज हम बात करने जा रहे हैं बिहार की क्योंकि अभी बिहार विधानसभा चुनाव होने वाला है और सारी राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी जुगलबंदी में लगी हुई हैं।

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जातिवादी राजनीति का नतीजा क्या है?
बिहार की राजनीति पूर्ण रूप से जाति और धार्मिक आधार पर बंटी हुई जैसा की भारत के अधिकांश राज्यों की स्थिति है और कोई दल अपने को इससे बाहर नहीं रख सकता है और अगर कोई दल कहता है कि हम जाति के आधार पर राजनीति नहीं करते हैं, तो समझिए कि वह आपको एक आभाषी दुनिया की ओर ले जा रहा है।
इसी जातिवादी राजनीति का नतीजा है कि चुनाव के अंतिम समय में हमारे राज्य के सारी विकास की बातें, सभी घोषणा-पत्र धरे के धरे रह जाते हैं और सारी राजनीति जाति और धर्म के के बहस में गुम हो जाती हैं। जनता के बुनियादी मुद्दे बहस से गायब हो जाते हैं।

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जबकि 2020 में भारत के अंदर सबसे अधिक युवा मतदाता 24% हैं और पिछले लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक नए युवा मतदाता वाले पांच राज्य हैं, जिसमें बिहार नंबर एक पर है।
यह डेटा भारतीय चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार है। बिहार में 2014 लोकसभा चुनाव के समय 63,800,160 मतदाता थे जो 2018 में बढ़कर 69,934,100 हो गए। इन आंकड़ों के अनुसार इन चार सालों में बिहार में 61,33,940 नए मतदाता जुड़े और संभवतः इसकी संख्या में और भी बढ़ोत्तरी हुई होगी, क्योंकि यह आंकड़ा दो साल पहले का है।

इस प्रकार बिहार देश का सबसे बड़ी युवा जनसंख्या वाला प्रदेश है। किशोरावस्था से लेकर मध्यम आयु तक की जनसंख्या को युवा के रूप में परिभाषित किया गया है लेकिन परिभाषाएं विभिन्न एजेंसियों में भिन्न हो सकती हैं।

संयुक्त राष्ट्र की शोध रिपोर्ट में आमतौर पर युवाओं के रूप में 15 से 24 वर्ष आयु वर्ग को वर्गीकृत किया गया है। भारत में राष्ट्रीय युवा नीति (2003) ने 13 से 35 वर्ष की आयु के युवाओं को परिभाषित किया। बाद में, राष्ट्रीय युवा नीति 2014 ने इस आयु वर्ग को 15-29 वर्ष के रूप में फिर से परिभाषित किया।
श्रमबल भागीदारी के आंकड़ों के लिए NSSO 68वां दौर 15-29 सालों में तय हुआ। 2017 में जारी युवाओं पर नवीनतम एनएसएसओ रिपोर्ट में, ब्रैकेट 15-34 वर्ष की आयु तक चला गया। अब बिहार के युवाओं को गंभीरता पूर्वक सोचना होगा कि क्या अब भी वह जाति और धर्म के राजनीतिक बंधन में बंधे रहेंगे या फिर भविष्य के अपने मुद्दों जैसे शिक्षा, रोज़गार जैसे गंभीर विषय पर वह विचार कर के अपना मताधिकार करेंगे?

बिहार में युवाओं की बदहाली कब सुधरेगी?
बिहार के अंदर युवाओं के लिए एक बहुत ही गंभीर समस्या यह भी है कि यहां पर मैट्रिक पास करने के बाद उनको आगे की पढ़ाई करने के लिए कोचिंग संस्थानों पर निर्भर रहना पड़ता है, क्योंकि आगे की पढ़ाई के लिए सरकारी +2 स्कूलों और विश्विद्यालयों में शिक्षकों की बहुत कमी है।

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जबकि वर्तमान परिस्थिति में अगर हम युवा इस प्रकार से जाति की राजनीति को ही अपना मुद्दा समझकर वोट करते रहेंगे, तो फिर किसी भी दल की सरकार बने उनसे किसी प्रकार की बेहतर शिक्षा और रोज़गार के अवसर की उम्मीद करना बेमानी होगी। बिहार के अंदर अगर हम परिवर्तन चाहते हैं, तो हम युवाओं को अपने सोच का नज़रीया बदलना होगा तब ही कुछ संभव हो सकता है।

By Editor


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