jitan ram manjhiजीहुजूरी नहीं बेबाक सियासत;मांझी की अदा मुझे पसंद आई

जीहुजूरी नहीं बेबाक सियासत; मांझी की अदा मुझे पसंद आई

भारतीय सियासत का एक अवगुण यह है कि बुलंदियों पर पहुंचने के लिए अकसर नेता जीहुजूरी को तरजीह देते हैं. पर जीतन राम मांझी अपवाद हैं.

Naukarshahi.Com
Irshadul Haque, Editor naukarshahi.com

मांझी बेबाक हैं. दिल से बोल देते हैं. वह इसकी परवाह नहीं करते कि उनके बेबाक बोल से किसे ठेस पहुंचे या किसी बुरा लगे.

ताजा घटना वैक्सीन के प्रमाण पत्र पर लगी तस्वीर से जुड़ी है. उन्होंने पिछले दिनों वैक्सीन का दूसरा डेज लिया तो पहली बार देखा कि उस पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर लगी है. उन्होंने महसूस किया कि यह आत्मप्रचार की प्रकाष्ठा है. सो मांझी चुप नहीं रहे. उन्होंने मोदी की तस्वीर देखते ही बड़ी सख्त, साहसिक और बेबाक टिप्पणी कर दी. उन्होंने ट्वीट किया;-

“वैक्सीन के सर्टिफिकेट पर यदि तस्वीर लगाने का इतना ही शौक़ है तो कोरोना से हो रही मृत्यु के डेथ सर्टिफिकेट पर भी तस्वीर लगाई जाए। यही न्याय संगत होगा”.

याद रखने की बात है कि मांझी एनडीए के नेता हैं और मोदी इसके सबसे पावरफुल नेता हैं. जाहिर ऐसी मांग पर नरेंद्र मोदी की भवें चढ़ गयी होंगी.

अपने नायकत्व को नहीं पहचान सके मांझी

एनडीए में रहते हुए जीतन राम मांझी बिहार के मुख्यमंत्री हितों की चिंता किये बिना बेबाकी से बोल पड़ते हैं. उन्होंने हाल ही में नीतीश कुमार को चुनावी घोषणा पत्र की याद दिलाते हुए कहा कि बेरोजगारों को पांच हजार रुपये का भत्ता देने का वादा पूरा करें.

जीतन राम मांझी ने 2014 में मुझसे एक साक्षात्कार में कहा था कि हमारे गांव के सामंत दस पसेरी चावल के लिए मेरी गुलामी लिखवाना चाहते थे. अगर मेरे पिता उनकी बात मान लेते तो आज मैं मुख्यमंत्री नहीं बनता

मांझी की बेबाकी का एक और ताजा उदाहरण देखिए. पप्पू यादव की गिरफ्तारी सरकार के इशारे पर हुई. इस मामले पर भाजपा और जदयू के अनेक नेता अनौपचारिक बातचीत में मानते हैं कि यह गलत हुआ. पप्पू जनसेवा कर रहे थे. उन्होंने भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूढ़ी के परिसर में एम्बुलेंस छुपाये रखने को उजागर करके बुरा नहीं किया. लेकिन क्या मजाल की जदयू और भाजपा का कोई नेता एक शब्द औपचारिक रूप से बोलने का साहस करे. लेकिन मांझी ने फिर अपने दिल की आवाज सुनी. उन्होंने साफ कहा कि “पप्पू की गिरफ्तारी से जनआक्रोष फैलेगा”.

‘वह दस पसेरी चावल के लिए मेरी गुलामी लिखवाना चाहते थे’: मांझी

अपने दिल और जमीर कीआवाज सुन कर बेबाकी से बोलना या अपने स्वाभिमान वाला आचरण करने का नुकसान भी मांझी ने उठाया है. याद करिये मई 2014 में जीतन राम मांझी को नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री बनवाया. तब नीतीश ने एक राजा की तरह अपना सिंहासन मांझी को सौंपा था . मांझी ने तब कोई पद पाने के लिए कोई लॉबीं नहीं की थी. सत्ता संभालते ही उन्हें अपने स्वाभिमान और पद की गरिमा का एहसास था. वह इतिहास में ऐसे मुख्यमंत्री के तौर पर दर्ज होना नहीं चाहते थे जिनकी नकेल किसी और के हाथ में हो. मांझी ने फुलफ्लेज सीएम की भूमिका निभानी शुरू कर दी. उनकी यह अदा नीतीश को पंसद नहीं आई. और जल्द ही उन्हें पद गंवाना पड़ा. मांझी चाहते तो जीहुजूरी करते हुए अपना कार्यकाल पूरा कर सकते थे. उन्होंने ऐसा नहीं किया.

पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी मुझे इन्हीं कारणों से पसंद हैं. ऐसा नहीं है कि मैं उन्हें सिर्फ पसंद ही करता हूं. कई मामलो में मैं उनका सख्त आलोचक भी हूं.

वह अपनी सियासत को कुछ-कुछ कांसी राम के रास्ते पर लिये चले जाते हैं. कांसी राम ब्रह्मणवाद के खिलाफ लड़े. संघर्ष किया. लेकिन उसी ब्रह्मणवादी पार्टी की गोद में सत्ता के लिए बैठे जिसका नाम भाजपा है. कुछ ऐसी सियासत मांझी करते हैं तो लगता है कि वह सत्ता मोह को अपने आदर्शों पर तरजीह दे रहे हैं.

By Editor


Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (0) in /home/naukarshahi/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427