ये है अखिलेश और तेजस्वी में फर्क, MIM के चार MLA राजद में
बिहार की राजनीति में आज बड़ी घटना हुई। AIMIM के पांच में चार विधायक राजद में शामिल हो गए। ये है यूपी और बिहार की राजनीति का बड़ा फर्क।
दीपक कुमार, बिहार ब्यूरो चीफ
सांसद असदुद्दीन औवैसी की पार्टी AIMIM के पांच में से चार विधायक आज राजद में शामिल हो गए। राजद में शामिल होनेवाले विधायक हैं- मो. शाहनवाज आलम (जोकीहाट), मो. अंजार नईमी (बहादुरपुर), इजहार आसफी (कोचाधामन) और सैयद रुकनुद्दीन अहमद (बायसी)। इस घटना ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बिहार में राजद नेता तेजस्वी यादव के बीच के फर्क को स्पष्ट कर दिया है।
दो दिन पहले यूपी में उपचुनाव का रिजल्ट आया। आजमगढ़ की सीट समाजवादी पार्टी हार गई। जिन मुसलमानों ने हाल में विधानसभा चुनाव में बसपा को ठुकरा कर समाजवादी पार्टी को जमकर वोट दिए थे, उन्होंने ही लोकसभा उपचुनाव में सपा को एक-एक वोट के लिए तरसा दिया। आजमगढ़ में बसपा प्रत्याशी को 2 लाख 60 हजार से अधिक वोट मिले। आजमगढ़, जिसे समाजवादी आंदोलन का गढ़ माना जाता है, वहां से सपा हार गई। यहां उपचुनाव में अखिलेश यादव प्रचार करने भी नहीं गए। माना जा रहा है कि यूपी में मुसलमानों के घरों पर बुलडोजर चलने पर भी अखिलेश यादव कहीं लड़ते हुए नहीं दिखे, इसी से मुसलमानों में नाराजगी बढ़ी और उन्होंने अखिलेश यादव को कड़ा संदेश दिया।
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा कि देश के हालात को देखते हुए इनलोगों ने यह फैसला लिया है। राजद के नए विधायकों ने राजद सुप्रीमों से भी आशीर्वाद लिया है। यह बड़ी खुशी की बात है कि फिर से इन्होंने पुराने घर में वापसी की है। ओवैसी की पार्टी के चारों विधायकों ने एक ही स्वर में कहा कि अभी जो देश के हालात है उसे देखते हुए हमलोगों ने यह फैसला लिया है अब हम सब मिलकर महागठबंधन को और मजबूत करेंगे।
एआईएमआईएम के चारों विधायकों का कहना था कि बंगाल और यूपी का चुनाव के परिणाम को देखते हुए हमने फैसला लिया कि बिहार में जो सेक्यूलर पार्टी है उसकी हाथों को अब मजबूत करेंगे। इसलिए राजद का दामन हमलोगों ने थामा है। इससे राजद और मजबूत होगा और नया बिहार बनेगा।
इसी समय तेजस्वी यादव में एमआईएम के पांच में से चार विधायकों ने विश्वास जताया। इससे पहले तेजस्वी ने बोचहा उपचुनाव में वह सीट एनडीए से छीन ली थी। बोचहा की जीत साधारण न थी। वहां राजद ने एनडीए के खास जवाधार यानी सवर्ण वोटरों को भी तोड़ लिया था। इसके साथ ही देश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ जिस तरह नफरत फैलाने की कोशिश की जा रही है, उसके खिलाफ भी तेजस्वी यादव मुखर रहे हैं। वे आरएसएस के खिलाफ भी हमेशा मुखर रहे हैं। उन्होंने विधानसभा के भीतर और बाहर भी संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के लिए समर्पण दिखाया है। बीमार होने के बावजूद लालू प्रसाद भी हमेशा भाजपा-संघ को चुनौती देते रहे हैं। याद रहे, यह वही समय है, जब ईडी के डर से कई नेता और दल भाजपा के आगे नतमस्तक हो रहे हैं।
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