बिहार की भूमि से उठ कर दुनिया में छा जाने वाले सुपुत्रों में रामगुलाम मॉरिशस के राष्ट्रपति बने थे.आइए जानते हैं कि कैसे बिहार के परमानंद झा नेपाल के उपराष्ट्रपति बने और हिंदी के सम्मान की लड़ाई लड़ी.

परमानंद झा: गर्व की गाथा
परमानंद झा: गर्व की गाथा
दीपक कुमार,मधुबनी
बिहार में पैदा हुए। बिहार में पढ़े- लिखे। फिर वे नेपाल चले गये। नेपाल में कानून की पढ़ाई की। नेपाल सुप्रीम कोर्ट के जज बने। कामयाबी की सीढ़ियों पर कुछ और ऊपर चढ़े। नेपाल के उपराष्ट्रपति जैसे प्रतिष्ठित पद पर भी पहुंच गये।
इतने बड़े पद पर पहुंचने के बाद हिन्दी के सम्मान के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। बिहार के इस महान सपूत का नाम है परमानंद झा।
परमानंद झा 2008 में नेपाल के उपराष्ट्रपति चुने गये थे। इसके पहले वे नेपाल सुप्रीम कोर्ट के जज थे। फिर वे मधेसी जनअधिकार फोरम का उम्मीदवार बन कर उपराष्ट्रपति के चुनाव में उतरे। उन्होंने चुनाव में माओवादी पार्टी की शांता श्रेष्ठ, नेपाली कांग्रेस के मान बहादुर और यूएमएल की लक्ष्मी शाक्या का हरा कर जीत हासिल की। जब राष्ट्रपति, परमानंद झा को उपराष्ट्रपति पद की नेपाली में शपथ दिलाने लगे तो उन्होंने अनुरोध किया कि उन्हें हिन्दी में शपथ दिलायी जाए।
विरोध के बावजूद नहीं झुके
उनके हिन्दी में शपथ लेने के बाद नेपाल में भारी विरोध शुरू हो गया। उन पर नेपाली संविधान की अनदेखी करने का आरोप लगा । पूरे नेपाल में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। लेकिन इसके बाद भी परमानंद झा अपनी बात पर कायम रहे। उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा किया और कहा गया कि नेपाल के संविधान के मुताबिक संवैधानिक पद के लिए केवल नेपाली भाषा में ही शपथ ली जा सकती है। नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई की और आदेश दिया कि परमानंद झा नेपाली भाषा में फिर शपथ लें। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसके विरोध में माओवादी पार्टी ने छह महीने तक नेपाली संसद को चलने नहीं दिया।
हुआ संविधान में संशोधन
इस वजह से उपराष्ट्रपति का पद छह महीने तक निष्क्रिय रहा। अंत में नेपाल की संविधान सभा ने एक संशोधन प्रस्ताव पारित किया कि राष्ट्रपति औऱ उपराष्ट्रपति नेपाली या अपनी मातृभाषा में शपथ ले सकते हैं। इस विवाद में करीब दो साल गुजर गये। आखिरकार 2010 में परमानंद झा ने मैथिली में शपथ ली और विधिसम्मत तरीके से उपराष्ट्रपति के पद पर आसीन हुए। परमानंद झा ने ऐसा इस लिए किया ताकि नेपाल में मधेसी लोगों के अधिकारों की लड़ाई को मजबूती दे सके। परमानंद झा बिहार के दरभंगा के गरौल के रहने वाले हैं। उनकी स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई मधुबनी में हुई। मधुबनी के खजौली हाईस्कूल से उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। फिर उन्होंने मधुबनी के आरके कॉलेज में एडमिशन लिया। वहां से ग्रेजुएशन किया। फिर वे नेपाल चले गये। नेपाल में कानून की डिग्री ली। उच्च शिक्षा के लिए वे बेल्जियम गये। वकालत में नाम कमाने के बाद परमानंद झा नेपाल सुप्रीम कोर्ट का जज बने।
दादा को समामान, बने नेपाली सेना के प्रधान
परमानंद झा के दादा शंकर झा मिथिलांचल के मशहूर पहलवान थे। शंकर झा ने बड़े बड़े पहलवानों को धूल चटा कर धूम मचा दी थी। दरभंगा, नेपाल की सीमा पर ही अवस्थित है। शंकर झा की पहलवानी के चर्चे नेपाल तक पहुंच गये थे। तत्कालीन नेपाल नरेश ने इससे प्रभावित हो कर शंकर झा को अपने दरबार में बुलाया और सेना में प्रधान की नौकरी दे दी। नेपाल के राजा ने खुश हो कर शंकर झा को सप्तरी जिले में बहुत जमीन भी दे थी। तभी से परमानंद झा के कुछ परिजन नेपाल में रहने लगे थे।
परमानंद झा का परिवार बिहार और नेपाल के रिश्तों की पुरानी कहानी है। उनके भाई आज भी दरभंगा में ही रहते हैं।

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