पत्रकार शरद राय की यह दर्दनाक कहानी पढ़िये.वह बता रहे हैं कि कैसे उनके बड़े पापा की हत्या के एक मात्र गवाह उनके भाई को अदाालत पहुंचने से पहले मार डाला गया. इतना ही नहीं उनका आरोप है कि इंसाफ के रखवालों को तीन बिगहा खेत बेच कर खरीदा भी गया.
आपबीती
28 जून 1996 को मेरे बड़े भाई मनोज राय जो 28 साल के थे उनको बक्सर में दिन के 10 बजे गोली मारकर हत्या कर दी गई। करीब 20 साल और ढाई महीने के बाद बक्सर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने हत्यारों को रिहा कर दिया। मेरे बड़े पापा श्री रंग नाथ राय की 7 दिसंबर 1994 को दिन के 11 बजे गोली मारकर हत्या कर दी गई थी जिसके चश्मदीद गवाह अकेले मनोज भैया थे। जिस दिन मनोज भैया की हत्या की गई उस दिन उनको कोर्ट में गवाही करनी थी लेकिन उसी दिन सिर्फ इसलिए हत्या कर दी गई ताकि वो गवाही न कर सके।
बड़े पापा के केस में भी जज ने चश्मदीद गवाह न होने का हवाला देते हुए केस में हत्यारों को रिहा कर दिया। मनोज भैया के केस में जज के सामने तीन चश्मदीद गवाह थे, सीआईडी जांच की रिपोर्ट थी, सीआईडी ने भी रिपोर्ट में साफ कर दिया था कि आरोपी हत्या में शामिल हैं, फिर भी हत्यारों को रिहा कर दिया गया। आज रिहाई से ठीक एक महीने पहले हत्यारों ने रिश्वत देने के लिए अपने घर की तीन बीघे जमीन बेच दी।
जिस दिन मनोज भैया को गवाही देना था उसी दिन गवाही से एक घंटे पहले हत्या कर दी गई, फिर भी रिहाई। 20 साल से ज्यादा इंतजार करने के बाद मिला क्या, अगर इस न्याय व्यवस्था में भरोसा रखें तो क्यों?
शरद राय की फेसबुक वॉल से