कविता से दूर हो जाने वाला मानव-समाज अस्वस्थ हो जाता है। कविता जीवनी-शक्ति देती है। इसमें समाज को बदलने की अद्भुत क्षमता है। कविता से दूर होकर आज का मनुष्य ‘मनुष्यता’ से दूर हो गया है। आज इसकी सर्वाधिक आवश्यकता है कि कविता को जीवन से जोड़ा जाये।IMG_20160717_171949_HDR

यह उद्गार आज पटना में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में वरिष्ठ कवि और गज़लगो मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’ के सद्यः प्रकाशित गीत-संग्रह “नदी की देह पर” का लोकार्पण करते हुए, सुप्रतिष्ठित साहित्यकार और त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल प्रो सिद्धेश्वर प्रसाद ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि, विश्वविद्यालयों और साहित्य की संस्थाओं में अध्यापन तथा प्रशिक्षण इस प्रकार से होना चाहिए कि युवाओं में कविता के प्रति रुझान बढे।

सभा की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने श्री करुणेश को पिछली पीढी का एक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक हस्ताक्षर बताया। उन्होंने कहा कि हिन्दी साहित्य में आज जब गीत और छंद को लगातार पीछे धकेलने का षडयंत्र चल रहा है ‘करुणेश’ जैसे छंद के सशक्त कवि इस अत्यंत मधुर और आकर्षित करनेवाली विधा को जीवंत बनाये रखा है। करुणेश एक संवेदन-शील और उच्च प्रतिभा-संपन्न कवि हैं। हिन्दी और मगही में इन्होंने गीत, गज़ल और मुक्तक के माध्यम से साहित्य का कमाल दिखाया है। गीत के शलाका-पुरुष आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री के बिहार में आज एक प्रभावशाली कवि करुणेश भी है, यह हम गर्व से कह सकते हैं। इनकी पुस्तकें “मोती मानसर के”, कहता हूँ गज़ल मैं”, “बहुत कुछ भूल जाता हूँ”, “गज़ल हे नाम”, “गज़ल में भुलाल मन”, “गीत मुझे गाने दो”,जिसका लोकार्पण आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री जी ने किया था, इसके उदाहरण हैं।

इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव ने करुणेश जी की साहित्यिक-प्रतिभा का विस्तारपूर्वक मूल्यांकन किया तथा उन्हें छंद का समर्थ कवि बताया। अपने कृतज्ञता ज्ञापन के क्रम में कवि ‘करुणेश’ ने इस पुस्तक में संकलित अनेक गीतों का सस्वर पाठ किया।

वरिष्ठ साहित्यकार जियालाल आर्य, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेन्द्र नाथ गुप्त, पं शिवदत्त मिश्र, डा शंकर प्रसाद, राजीव कुमार सिंह ‘परिमलेन्दु’, भगवती प्रसाद द्विवेदी, बलभद्र कल्याण, डा मेहता नगेन्द्र सिंह, श्रीराम तिवारी, डा विनोद कुमार मंगलम, कृष्णनंदन सिंह, राज कुमार प्रेमी तथा आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर डा नगेन्द्र प्रसाद मोहिनी, सुरेश चन्द्र मिश्र, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, हरेराम , शंकर शरण मधुकर, ज्ञानेश्वर शर्मा, कुमारी स्मृति, हरेन्द्र चतुर्वेदी, डा बी एन विश्वकर्मा, सरोज तिवारी, विश्वमोहन चौधरी संत, कृष्ण मोहन प्रसाद, नरेन्द्र देव आदि कवि-साहित्यकार उपस्थित थे। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।

 

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