गूँगे–बहरे बच्चों की शिक्षा के लिए विद्यार्थियों के साथ संचार और संवाद के लिए नए विकल्पों को भी विकसित किया जाना चाहिए।‘साइन लैंग्वेज‘के पुराने तरीक़ों में नए परिवर्तन किए जाने चाहिए। तभी उन हलाखों गूँगे–बहरे बच्चों के जीवन गुणवत्तापूर्ण और मूल्यवान बनाए जा सकते हैं,जो नही सुन पाने और नहीं बोल पाने की त्रासदपूर्ण जीवन जीने को विवश हैं।
यह बातें गत संध्या, अली यावर जंग राष्ट्रीय वाक् एवं श्रवण दिव्यांग जन संस्थान,मुंबई के सौजन्य से,बेउर स्थित इंडियन इंस्टिच्युट औफ़ हेल्थ एजुकेशन ऐंड रिसर्च में, विगत ३ अक्टूबर २०१८ से आरंभ हुए पाँच दिवसीय सतत पुनर्वास प्रशिक्षण कार्यशाला के समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए, संस्थान के निदेशक–प्रमुख डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि, ऐसे बच्चों के प्रशिक्षण–कार्यक्रम में नयी तकनीक का उपयोग आज समय की माँग है। “काम सुनने वाले एवं बहरे बच्चों की शिक्षा में संवाद के विकल्प“विषय पर आयोजित इस प्रशिक्षण कार्यशाला के सभी तीस प्रतिभागी विशेष शिक्षक–शिक्षिकाओं,पुनर्वास–कर्
इस अवसर पर, सुप्रसिद्ध नैदानिक मनोवैज्ञानिक डा नीरज कुमार जयपुरिया, डा संजीव राज, डा सजदा परवीन, डा एन के ठाकुर, डा सुनीता क़ायम, प्रीति तिवारी, सुमन कुल्लू,वासंती हंसदक,सोहासनिक कुमार तथा प्रो कपिलमुनि दूबे ने अपने वैज्ञानिक पत्र प्रस्तुत किए।
समापन समारोह में संस्थान के प्रशासी अधिकारी सूबेदार मेजर एस के झा, कुमारी पूर्णिमा,कुमारी सरिता एवं समिता झा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। प्रशिक्षण कार्यशाला में, हैदराबाद,कोलकाता, बनारस,झा