इस बात में कोई शक नहीं के आई एस आई एस अपनी लड़ाई में मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है। वैसे तो मानवाधिकार का पालन किसी भी लड़ाई में अमेरिका या रूस ने भी नहीं किया है लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या अमेरिका या रूस सीरिया की लड़ाई में सचमुच आई एस आई एस के खातमे के लिये उतरे हैं या इस बहाने सीरिया में दोनों अपना अपना वर्चस्व बढ़ाने में लगे हैं ?
काशिफ युनूस
इस बात में कोई शक नहीं के अमेरिका तेल के लिए अरब देशों पर अपना क़ब्ज़ा जमाना चाहता है लेकिन अपनी फ़ौज के सिपाहियों को ज़मीन पर उतारने से डरता है। अमेरिका चाहता है के वो सिर्फ हवाई हमला करे और ज़मीन पर उसके बदले कोई और लड़े। सीरिया में बशर अल असद की फ़ौज से ज़मीन पर लड़ने के लिए अमेरिका ने आई एस आई एस और तुर्की की मदद ली। सुन्नी हितों के नाम पर आई एस आई एस ने सुन्नी युवाओं को सशस्त्र किया। हथियार दिये अमेरिका ने। सबकुछ ठीक ठाक चल रहा था लेकिन बग़दादी ने अमेरिका से ग़द्दारी कर दी। तेल के ख़ज़ाने पर अपना क़ब्ज़ा देख बग़दादी को ऐसा लगा कि अब उसे अमेरिका की ज़रूरत नहीं है। जिस आई एस एस को अमेरिका ने खुद 2009-10 में जन्म दिया था और जो पिछले 6- 7 साल से बशर हुकूमत के खिलाफ लड़ रहा था और जिसके खिलाफ 2013 से पहले अमेरिकी सरकार ने कभी एक लफ्ज़ भी नहीं बोला था , अमेरिका को 2014 आते आते वही आई एस आई एस दुनिया का सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन लगने लगा. रातों रात पूरी दुनिया के अंतर्राष्ट्रीय मीडिया को एकजुट करके आई एस आई एस को आतंकवादी संगठन बताया जाने लगा।
लेकिन बीच में फंस गया फ्रांस। आई एस आई एस ने अपनी ताक़त दिखाई तो फ्रांस ने भभकी तो बहोत दी लेकिन फ्रांस को ये समझते देर न लगी के वो अकेले आई एस आई एस को ख़त्म कर्मी सखशम नहीं है। फ्रांस का मुंह देखकर पहले रूस और फिर ब्रिटेन भी लड़ाई में कूद गये। लेकिन क्या रूस और ब्रिटेन सिर्फ फ्रांस की मदद करने या आई एस आई एस को ख़त्म करने के लिए सीरिया में कूद पड़े हैं या तेल में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित करना है मक़सद ?
रुस की नजर कहीं, निशाना कहीं
अगर पिछले दिनों के रूसी हमलों को देखें तो ऐसा लगता है के रूस की नज़रें कहीं और निशाना कहीं है। रूस ने हमले के लिये खुफिया जानकारी अमेरिका की बजाये असद हुकूमत से लेना बेहतर समझा। असद के लोगों ने आई इस आई इस के सभी ठिकानों की जानकारी रूस को दी। लेकिन मज़ेदार बात ये थी के आई इस आई इस में दो गुट हैँ । एक वो जो अमेरिका और तुर्की से बाग़ी हो गये हैं और दूसरे वो जो अभी भी अमेरिका और तुर्की के इशारे पर काम करते हैं । रूस ने दोनों गुटों पर हमला कर दिया।
रूस की इस कार्यवाई को रोकने के लिए तुर्की ने रूस के दो जहाज़ मार गिराये। जब रूस ने आखें तरेरीं तो तुर्की ने अमेरिका को आगे आने को कहा। अब अमेरिका रूस को ये समझा रहा है के रूस सिर्फ उन्ही ठिकानों पर हमला करे जहाँ हमला करने के लिए अमेरिका बताये। लेकिन रूस मानने को तैयार नहीं है। रूस चाहता है के असद हुकूमत के अलावा सीरिया में दूसरी कोई ताकत ना हो जबकि अमेरिका का हित उस गट को बचाये रखने में है जोकि अमेरिका हितैषी है। जिस तरह अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान में अच्छे तालिबान और ख़राब तालिबान का खेल खेला था ठीक वही खेल वो सीरिया में खेलना चाहता है।
क्या है सीरिया की असल लड़ाई? कैसे जा रही है मासूम लोगों की जान महाशक्तियों के अपने वर्चस्व की लड़ाई में? कैसे तेल पैर क़ब्ज़े के लिए रूस मासूम बच्चों की जाने ले रहा है ? कौन है दुनिया का सबसे बड़ा असलीआतंकवादी ? कोई आतंकवादी संगठन या कोई आतंकवादी राष्ट्र? किसने रखा है सीरिया की लड़ाई में मानवाधिकारों का मान और कौन कर रहा है सबसे ज़्यादा उलंघन ?