पटना में बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन का भव्य सभागार, गए शाम तक कोमल–मीठे स्वरों से गुंजित होता रहा, जिसमें स्त्री–मन की हृदय–भेदी संवेदनाएँ भी थी और मन को झंकझोर देनेवाली वेदना भी। कहीं प्रेम और उदात्त समर्पण के शब्द थे, तो कहीं उलाहने और अधिकार माँगते स्वर भी।
आज विदुषी साहित्यसेवी गिरिजा बरणबाल की ७८वीं जयंती पर, साहित्य सम्मेलन में कवयित्री–सम्मेलन का आयोजन किया गया था। आकर्षक परिधानों में सजी–धजी दर्जनों की संख्या में पहुँची कवयित्रियों का यह विराट–सम्मेलन देखते हीं बनता था। बड़े दिनों के बाद आज सम्मेलन का सभागार दिलकश मधुर स्वरों का साक्षी बना और सिद्ध कर दिया कि, बिहार में महिलाएँ सारस्वत–अभिव्यक्ति के कार्य में भी पुरुषों से कम नहीं हैं। कानों में रस घोलती आवाज़ का क्रम जो कवयित्री अनुपमा नाथ की वाणी–वंदना से आरंभ हुआ, कवयित्री डा मधु वर्मा के अध्यक्षीय काव्य–पाठ पर समाप्त हुआ।
वरिष्ठ कवयित्री आराधना प्रसाद ने जब इन पंक्तियों से श्रोताओं का ध्यान खींचा कि, “मंज़िल की आरज़ू है तो बढ़िए जुनून से/ राहों में फूल, काँटें कि पत्थर न देखिए” तो श्रोताओं ने तालियों की गड़गड़ाहट से शायरा की सराहना की। डा सागरिका राय ने स्मृतियों को इन पंक्तियों से टटोला कि, “यादों के बिखरे मोतियों को चुन कर संभाल कर रखे हैं/ पर वक़्त बड़ा छलना निकला“। डा पुष्पा जमुआर ने ज़िंदगी को इन पंक्तियों में समझने की कोशिश की कि, “ओ ज़िंदगी के फेरे! सबको तुम ही घेरे / तेरे फेरे के फेर में ट्रस्ट है मन–प्राण सबका, ओ ज़िंदगी के फेरे!”
डा सुलक्ष्मी कुमारी ने वर्तमान को इस नज़रिए से देखा कि, “इंसान के भीतर रंज और आग बहुत है/कोई बर्फ़ की चादर बिछाए तो क्या बात हो“। युवा कवयित्री नन्दिनी प्रनय ने इन पंक्तियों में अपने दिल की बात की कि, “टुकड़ों में बँट गयी है, यों रात आज की/ ख़्वाबों में हीं हुई है, कुछ बात आज की“। डा सीमा रानी ने कहा कि “आदमी आदमी से दूर है/ पत्थर के शहर में, पत्थर के बुत हैं/ बुत के सीने में, रक्तिम आँसुओं का सैलाब भरपूर है/ छलकी हुई बूँदें कहीं पलकों से न चू पड़े/ इसी शर्म से आदमी हँसने को मजबूर है“।
वरिष्ठ कवयित्री कल्याणी कुसुम सिंह, कालिन्दी त्रिवेदी, डा पूनम आनंद, डा सुधा सिन्हा, डा लक्ष्मी सिंह,लता प्रासर, संजु शरण, डा शांति ओझा, डा शालिनी पाण्डेय, डा सुधा सिन्हा, डा मंगला रानी, डा अर्चना त्रिपाठी, पूजा ऋतुराज, प्रेम लता सिंह, अर्चना सिन्हा, वीणा अम्बषट्, डा पूनम देवा ने भी अपनी रचनाओं के सुमधुर पाठ से श्रोताओं का ध्यान खींचा।मंच का संचालन कवयित्री डा सीमा यादव ने किया।
कवयित्री–सम्मेलन आरंभ होने के पूर्व, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ समेत अनेक साहित्यकारों और प्रबुद्धजनों ने गिरिजा जी के चित्र पर माल्यार्पण और पुष्पांजलि कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। अपने उद्गार में डा सुलभ ने कहा कि, गिरिजा जी एक अत्यंत प्रतिभाशाली कवयित्री और निबंधकार थीं। उनकी रचनाओं में उनकी प्रतिभा और विद्वता की स्पष्ट झलक मिलती थी। उनकी विनम्रता और उनका आंतरिक सौंदर्य, उनके विचारों और व्यवहार में स्पष्ट परिलक्षित होता था। उनके व्याख्यान भी अत्यंत प्रभावकारी होते थे। सदा मुस्कुराती उनकी दिव्य छवि बिसराई नही जा सकती।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त, पं शिवदत्त मिश्र, डा शंकर प्रसाद, साहित्य मंत्री डा शिववंश पांडेय, कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र आदि ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए। इस अवसर पर बड़ी संख्या में उपस्थित प्रबुद्ध श्रोताओं में, डा नागेश्वर यादव, बच्चा ठाकुर, सुनील कुमार दूबे, आचार्य पाँचु राम, कृष्ण रंजन सिंह, जय प्रकाश पुजारी, बाँके बिहारी साव, प्रभात धवन, राज कुमार प्रेमी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी डा हँसमुख सिंह सम्मिलित थे।