पटना,१७ अगसत्त। बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा,संत महाकवि तुलसीदास की जयंती पर आयोजित ‘कवि–नमन‘कार्यक्रम को, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी बाजपेयी के ‘कवि–व्यक्तित्व‘को समर्पित कर,श्रद्धा–तर्पण के रूप में मनाया गया। सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ समेत सभी साहित्यकारों ने, सम्मेलन में स्थापित तुलसी दास की मूर्ति पर माल्यार्पण कर,संतकवि के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की।
अपने अध्यक्षीय उद्गार में डा सुलभ ने कहा कि, महाकवि तुलसीदास काव्य–संसार के एक ऐसे महापुरुष हैं,जिन्होंने भारतीय मनीषा के उस दर्शन को प्रतिपादित किया कि, कवि ‘देव‘होते हैं। तुलसी अपने विश्व–महाकाव्य‘रामचरित मानस‘के माध्यम से लोक–जागरण के ‘लोक–नायक कवि‘ के रूप में साहित्य–संसार में प्रतिष्ठा पायी। संत कवि तुलसी दास का स्मरण, श्री राम के स्मरण के समान तथा किसी तीर्थ–यात्रा सा पावन है। ये तुलसी हीं हैं,जिन्होंने अपने इसी महाकाव्य के माध्यम से,बाल्मीकि के‘मर्यादा–पुरुषोत्तम‘श्री राम को ‘भगवान‘बना दिया। ‘मानस‘के पूर्व भारतीय समाज में भी श्री राम की इस रूप में प्राण–प्रतिष्ठा नही थी।
डा सुलभ ने भारत के दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी बाजपेयी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि काल का यह क्रूर आघात,भारतीय राजनीति के एक विशाल नक्षत्र–मंडल को हीं नही बिखेर दिया है,बल्कि हिन्दी के एक महान सेवक, उन्नायक और परम–हितैषी कवि को भी हम से छीन लिया है। बाजपेयी जी ने जिस प्रकार संयुक्त–राष्ट्र–संघ में, प्रांजल हिंदी भाषा में अपना ऐतिहासिक व्याख्यान दिया था, उसे हिंदी–जगत कभी भूल नही सकता। उनकी काव्य–प्रतिभा भी अद्भुत थी। यदि वे राजनीति में न होते, तो साहित्य के बड़े नक्षत्र के रूप में प्रतिष्ठा पाते। राजनीति के झंझटों ने उनके भीतर के कवि को मोटे कंबल से बाँध कर रख दिया।
सम्मेलन के प्रधानमंत्री आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव ने कहा कि तुलसी का समग्र साहित्य लोकरंजक और लोक–कल्याणकारी है। तुलसी इसीलिए पूज्य हैं कि उन्होंने प्रेम और भक्ति को मनुष्य के आध्यात्मिक उन्नयन का आधार माना और अपने साहित्य में प्रतिपादित किया।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त, कुमार अनुपम,डा बच्चा ठाकुर, डा सीमा रानी, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा आर प्रवेश, डा एच पी सिंह, डा शहनाज़ फ़ातमी तथा डा विनय कुमार विष्णुपुरी ने भी अपने श्रद्धा–उद्गार व्यक्त किए।
कवियों ने दोनों कवियों को नमन करते हुए, काव्यांजलि दी। कवयित्री चंदा मिश्र ने तुलसीदास जी की सुप्रसिद्ध गणेश–वंदना ‘गाइए गणपति जग वंदन!’ से‘कवि–नमन‘कार्यक्रम का आरंभ किया।
डा शंकर प्रसाद ने बाजपेयी जी की सुप्रसिद्ध कविता ‘क्या खोया, क्या पायाजग में‘ का सस्वर पाठ कर उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की। कवयित्री आराधना प्रसाद ने पंक्तियाँ समर्पित करती हुई कहा कि “कभी गीतों की ख़ुशबू में याद आएँगे अटल जी/ मधुर कोई जब बोलेगा याद आएँगे अटल जी/कभी सूरज की लाली में,कभी तारों की महफ़िल में/ कबी संदल में उपवन में याद आएँगे अटल जी“।
कवयित्री डा सीमा रानी ने कहा कि,”भारत के भाल पर अटल तेरा नाम रहेगा/तेरी कमल–सी निर्मलता का जन–जन में सम्मान रहेगा“। काव्यांजलि देने वालों में कवि राज कुमार प्रेमी, जय प्रकाश पुजारी, डा पुष्पा जमुआर, डा सुलक्ष्मी कुमारी, नंदिनी प्रनम, शुभचंद्र सिन्हा, आनंद प्रवीण,कुमारी मेनका, अजय कुमार सिंह, रवींद्र कुमार सिंह सम्मिलित थे।
सभा के अंत में दो मिनट मौन रख कर दिवंगत आत्मा की सद्गति के लिए प्रार्थना की गई।