साहित्यालोचन और काव्य–शास्त्र के आदर्श हैं आचार्य रामचंद्र शुक्ल
१३६वीं जयंती पर बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुई संगोष्ठी, कवियों ने दी काव्यांजलि
पटना,११ अक्टूबर । काव्य में भाव और रस के महान पक्षधर,हिन्दी–समालोचना के शिखर पुरुष पं रामचंद्र शुक्ल हिन्दी साहित्य के महान समालोचक, साहित्येतिहासकार,निबं
गिरिजा बरणबाल की जयंती पर साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुआ कवयित्री-सम्मेलन
यह बातें आज यहाँ, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में,शुक्ल जी की १३६वीं जयंती पर आयोजित संगोष्ठी एवं कवि–सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, शुक्ल जी ने अपने संघर्षपूर्ण जीवन से, मानव–मस्तिष्क और उसके विचारों को पढ़ने की एक विलक्षण शक्ति प्राप्त की थी। उन्हें मानव–मन को समझने और उसके विश्लेषण की अद्भुत क्षमता प्राप्त थी। एक कुशल मनोवैज्ञानिक की भाँति वे कविता के मर्म को कुछ पंक्तियों के अवलोकन से हीं भाँप लेते थे। उनका विचार था कि काव्य की रचना केवल आनंद के लिए नहीं, वरण लोक–कल्याण के महान लक्ष्य को ध्यान में रखकर की जानी चाहिए। उन्होंने हिन्दी साहित्य को हर प्रकार से समृद्ध किया। उनकी पहली कहानी ‘ग्यारह वर्ष का समय‘ को आधुनिक हिन्दी की पहली ‘मौलिक कहानी‘ माना जाता है।
उन्होंने कहा कि, सैकड़ों वर्षों की ग़ुलामी में भारत अपनी बौद्धिक क्षमता भूल गया था। ऐसे समय में पं रामचंद्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य का इतिहास लिख कर, भारत को उसकी महान परंपरा से न केवल अवगत कराया बल्कि जन–मानस को झंकझोर कर जगाया। उन्होंने हिन्दी को ऐसी ऊँचाई दी,जिसे अब तक लाँघा नही जा सका है। उन्होंने हिन्दी के लिए कुबेर का ख़ज़ाना छोड़ा है।
अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त ने कहा कि, शुक्ल जी ने हिन्दी की अद्वितीय सेवा की। यदि उन्होंने हिन्दी साहित्य का इतिहास लेखन के अतिरिक्त कुछ भी न लिखा होता तो भी वे हिन्दी साहित्य में अमर रहते।
इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ कवि राज कुमार प्रेमी की वाणी–वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि घनश्याम ने पटना के जल–जमाव को अपनी ग़ज़ल का विषय बनाते हुए कहा कि, “ हर तरफ़ पानी ही पानी देखिए/ मुश्किलों में जिंदगानी देखिए/ जिसके ऊपर नाज़ करता है बिहार/उसकी बेवस राजधानी देखिए“। शुभ चंद्र सिन्हा का कहना था – “पीड़ा को छू कर देखो/ अपने मन की आँखों को उतरने तो दो/अपनी पूरी दृष्टि के समस्त विस्तार के साथ।“
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ओज के कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय का कहना था कि, “ गरज उठा शेर विश्व का बादशाह बनकर/नचा डाला सर्व शक्तिमान को पकड़े–पकड़े हाथ मदारी–सा तनकर/मिमियाती रह गई बकरियाँ/खिसियाती बिल्लियाँ/उड़ा रही थी जो खिल्लियाँ”।
कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र,बच्चा ठाकुर, डा सीमा रानी, सुनील कुमार दूबे, कुमारी अभिलाषा, डा सुधा सिन्हा, डा सुलोचना कुमारी, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, जय प्रकाश पुजारी, रवींद्र कुमार सिंह, अश्विनी कुमार आदि कवियों ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन ओम् प्रकाश पाण्डेय‘प्रकाश‘ ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।