31 साल बाद उर्दू अनुवादकों की परीक्षा, रिजल्ट के लिए फैली बेचैनी
बिहार की दूसरी राजभाषा उर्दू है। पहली बार 1990 में उर्दू अनुवादकों की नियुक्ति हुई थी। 29 साल बाद दूसरी वैकेंसी निकली। परीक्षा हुई, पर रिजल्ट कब निकलेगा?
1984 में बिहार में उर्दू दूसरी राजभाषा बनी। यह फैसला कांग्रेसी मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र का था। उसके बाद लालू प्रसाद की जनता दल सरकार में 1990 में वैकेंसी निकली। बहाली हुई। इसके 26 साल बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2016 में उर्दू अनुवादकों की बहाली की घोषणा की। सभी अखबारों में यह खबर पहले पन्ने पर छपी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तब कहा था कि थाने, प्रखंड से लेकर हर स्तर पर उर्दू अनुवादक बहाल होंगे। सरकारी आदेश भी उर्दू में निकलेंगे।
मुख्यमंत्री की इस घोषणा तीन साल बाद 2019 में उर्दू अनुवादकों की वैकेंसी निकली। यह 1294 सहायक उर्दू अनुवादक, 202 अनुवादक और 9 राजभाषा सहायक (उर्दू) कुल 1505 पदों के लिए वैकेंसी थी। तीन बार परीक्षा स्थगित हुई। फिर इस साल के प्रारंभ में परीक्षाएं हुईं, लेकिन रिजल्ट कब निकलेगा, इसके बार में सरकार की तरफ से कोई अंतिम तारीख नहीं दी गई है।
उर्दू अनुवादकों के रिजल्ट प्रकाशन के लिए अभियान चला रहे ताबिश आलम ने नौकरशाही डॉट कॉम को बताया कि परीक्षा में कुल 66000 हजार उम्मीदवार शामिल हुए। इस बीच इंटरमीडिएट परीक्षा का रिजल्ट आ गया। इसमें 13.5 लाख परीक्षार्थी थे। सवाल है कि सरकार साढ़े तेरह लाख कापियों की जांच कर सकती है, तो सिर्फ 66 हजार उम्मीदवारों के रिजल्ट में देरी का क्या कारण है। इसी से सरकार की मंशा पर भी सवाल उठता है और बेचैनी भी बढ़ती है।
ताबिश आलम ने बताया कि रिजल्ट के लिए बार-बार सरकार को ज्ञापन दिया गया। यही नहीं, सोशल मीडिया पर लगातार अभियान भी चलाया गया। मई से जून के बीच ऐसे तीन अभियान चल चुके हैं। 27 जून, 2021 को ट्विटर पर #BSSC_URDU_RESULT दिनभर ट्रेंड करता रहा। लगभग सवा लाख ट्वीट हुए। लेकिन सरकार की तरफ से कोई अंतिम तारीख घोषित नहीं होने से अभ्यर्थियों में बेचैनी बढ़ रही है।
Modi से भिड़ी झारखंड सरकार, कहा, गलत है वैक्सीन पॉलिसी
उर्दू अनुवादक पदों के लिए परीक्षा दे चुके अभ्यर्थियों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अपील की है कि वे जल्द से जल्द रिजल्ट प्रकाशित कर नियुक्ति का आदेश दें, ताकि सफल अभ्यर्थी अपनी सेवा राज्य सरकार को दे सकें। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का लंबे समय से नारा भी रहा है- न्याय के साथ विकास।
दिल्ली में किसानों ने भाजपा नेता को दिखाया काला झंडा, बवाल