9 राज्यों में चुनाव से पहले पहुंची 30 हजार संघ विस्तारकों की फौज
भाजपा की चुनावी जीत में बड़ी भूमिका होती है दीन दयाल विस्तारकों की। 9 राज्यों में पहुंचे 30 हजार विस्तारक। क्या और कैसे काम करते हैं ये विस्तारक?
इर्शादुल हक, संपादक, नौकरशाही डॉट कॉम
भाजपा के बारे में कहा जाता है कि उसका संगठन गांव-गांव तक फैला है। दरअसल ये दीन दयाल उपाध्याय विस्तारक होते हैं, जो संघ और उसके सहयोगी संगठनों के पके हुए कार्यकर्ता होते हैं, जो चुनाव से एक साल पहले ही क्षेत्र में पहुंच जाते हैं और गांव-गांव जाकर न सिर्फ पार्टी की स्थिति की जानकारी लेते हैं, बल्कि प्रचारक का काम भी करते हैं। दीन दयाल उपाध्याय विस्तारक योजना की शुरुआत अमित शाह ने 25 अप्रैल, 2017 को किया।
2023 बहुत महत्वपूर्ण है। इस साल देश में 9 राज्यों में चुनाव होगा। त्रिपुरा, मेघालय, नगालैंड, मिजोरम, कर्नाटक, तेलंगाना, राजस्थान, एमपी, छत्तीसगढ़ में चुनाव होंगे। भाजपा नेतृत्व ने अभी ही इन राज्यों में 30 हजार विस्तारकों को भेज दिया है। ये विधानसभा चुनाव के बाद अकले साल लोकसभा चुनाव तक वहीं रहेंगे।
हर विस्तारक के जिम्मे एक विधानसभा क्षेत्र होता है। इसे विस्तारक प्रमुख कहा जाता है। हर विस्तारक प्रमुख के नीचे एक सह-विस्तारक और एक विस्तारक होता है। ये चुनाव से पहले अपने निर्धारित क्षेत्र में पहुंच जाते हैं। विस्तारक वे ही होते हैं, जो संघ और उसके संगठनों जैसे विद्यार्थी परिषद, बजरंग दल, विहिप के पके हुए कार्यकर्ता होते हैं।
दीन दयाल विस्तारक को सीधे भाजपा मुख्यालय से भेजा जाता है। ये अपनी रिपोर्ट भी सीधे हेड क्वार्टर को देते हैं। इनका सारा खर्च संगठन वहन करता है। इन्हें दौरा करने के लिए मोटरसाइकिल दी जाती है। आप सुनते हैं कि भाजपा ने एक साथ दो सौ-तीन सौ बाइक खरीदी, तो दरअसल वह इन्हीं विस्तारकों के लिए खरीदी जाती है।
ये विस्तारक हर बूथ तक जाते हैं। स्थानीय लोगों से समस्याएं, पार्टी के प्रति रुख, स्थानीय भाजपा नेता या विधायक सांसद के प्रति लोगों की भावना-समझ को नोट करते हैं। समय-समय पर अपनी रिपोर्ट भाजपा मुख्यालय को भेजते हैं। इनके फीडबैक पर ही वहां बाहर से जानेवाले बड़े नेता अपने भाषणों में मुद्दे उठाते हैं।
इन विस्तारकों की रिपोर्ट पर ही किसी को टिकट मिलता है या किसी का कट जाता है। हाल में गुजरात में बड़े पैमाने पर विधायकों के टिकट काटे गए। ऐसा इन्हीं विस्तारकों की रिपोर्ट के आधार पर किया गया।
ये विस्तारक चुनाव से पहले अध्ययन, शोध करते हैं, फीडबैक भेजते हैं और चुनाव की घोषणा के साथ ही इनकी भूमिका बदल जाती है। चुनाव के समय ये विस्तारक चुनाव प्रचारक की भूमिका में आ जाते हैं। भाजपा के नारे, नैरेटिव को, चाहे वह नफरत फैलाने वाला ही क्यों न हो, उसे जनता के बीच बड़े प्यार से पहुंचाते हैं।
भाजपा की चुनावी मशीन से क्या क्षेत्रीय दल कुछ सीखेंगे? क्षेत्रीय दल पहले से इस तरह जमीन पर कोई तैयारी नहीं करते। अगर वे भी बिहार जैसे राज्य में अतिपिछड़े-पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग के युवाओं को नीचे काम में लगाएं और उनके फीडबैक का विश्लेषण करते हुए रणनीति बनाएं, तो निश्चित ही उन्हें फायदा होगा।