मुजफ्फरपुर आश्रय गृह कांड में बिहार सरकार की फजीहत का सिलसिला जारी है। आज भी सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक अहम फैसला लिया है, जो बिहार सरकार के लिए तगड़ा झटका से कम नहीं है। जस्टिस मदन बी लोकुर, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने आज बिहार के 16आश्रय गृहों में रहने वाले बच्चों के शारीरिक और यौन शोषण के आरोपों की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंप दी।

नौकरशाही डेस्क

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भी बिहार सरकार के कामकाज के रवैये पर नाराजगी जताया था और कहा था कि इस मामले को लेकर बिहार सरकार का रूख नरम है।  सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को इस मामले में दर्ज एफआईआर को बदलने का आदेश दिया और अगले 24 घंटे में इस मामले में रेप और पॉक्सो एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज करने को भी कहा था।

एकबार फिर से सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार के रवैये से नाराज होकर इन मामलों की जांच सीबीआई को नहीं सौंपने का राज्य सरकार का अनुरोध ठुकरा दिया। मालूम हो कि अभी तक बिहार पुलिस इन मामलों की जांच कर रही थी।  शीर्ष अदालत ने कहा कि टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस-टिस) की रिपोर्ट में राज्य के 17 आश्रय गृहों के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की गयी थी। इसलिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को इनकी जांच करनी ही चाहिए। इनमें से एक मुजफ्फरपुर आश्रयगृह में लड़कियों का कथित रूप से बलात्कार और यौन शोषण कांड की जांच ब्यूरो पहले ही कर रहा है।

बता दें कि टीआईएसएस की रिपोर्ट के आधार पर मुजफ्फरपुर आश्रय गृह कांड में 31 मई को 11 व्यक्तियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी थी। बाद में यह मामला सीबीआई को सौंप दिया गया। इस मामले में अब तक कम से कम 17व्यक्ति गिरफ्तार किये जा चुके हैं।

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