Advantage Care : कोविड से 10 लाख बेटियों की छूट जाएगी पढ़ाई

Advantage Care वर्चुअल डायलॉग सीरीज में चाइल्ड फंड की वरिष्ठ शिक्षा विशेषज्ञ एकता चंदा ने कहा कि महामारी के कारण दस लाख बेटियों की पढ़ाई छूट सकती है।

एकता चंदा

चाइल्ड फंड की वरिष्ठ शिक्षा विशेषज्ञ एकता चंदा के अनुसार कोविड की वजह से बच्चे लगभग दो वर्ष से स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। ऑनलाइन शिक्षा पहुंचाने की कोशिश की गई, लेकिन 70 से 80 प्रतिशत बच्चों तक यह नहीं पहुंच पाया। ऐसे में बच्चों में काफी घबराहट और तनाव है। बहुत बच्चे ड्राप आउट होने के कगार पर पहुंच गए हैं।

एकता चंदा रविवार को एडवांटेजे केयर वर्चुअल डायलॉग सीरीज के आठवें एपिसोड में बोल रही थीं। शाम चार से पांच बजे आयोजित इस परिचर्चा में कोविड में ‘बच्चों के जीवंत अनुभव और आगे की आशा‘ पर विशेषज्ञ अपनी बात रख रहे थे। एकता चंदा ने कहा कि इस महामारी से 10 लाख बच्चियां व लड़कियां स्कूल से ड्रॉप आउट होंगी। बाल श्रम बढ़ेगा। इस महामारी की वजह से बच्चे अनाथ हो गए हैं। श्रीमती चंदा ने कहा कि स्कूल जैसे खुलेंगे तो बच्चे ट्रामा वाली स्थिति में होंगे। ऐसे में उनके लिए स्कूल में विशेष सत्र आयोजित करने की जरूरत है। इमोशनल लर्निंग की जरूरत होगी। एकता के अनुसार माना जा रहा है कि इस महामारी से बहुत बच्चे स्कूल से छूट जाएंगे। इसके कुछ कारण हैं। जैसे-जीवनयापन की समस्या, जो प्रवासी वापस आएं हैं उनके बच्चों को कहां नामांकित किया जाएगा आदि। इसमें परेशानी आएगी। इसलिए सघन मापन की आवश्यकता होगी। इसके अलावा लर्निंग गैप बढ़ेगा। इसके लिए ब्रिज कोर्स चलाना होगा। कार्यक्रम का संचालन टीवी पत्रकार अफशां अंजुम ने किया।

दूसरी लहर में चार गुना लोग प्रभावित हुए: डाॅ. सिद्धार्था रेड्डी

डॉ. सिद्धार्था रेड्डी

परिचर्चा में यूनिसेफ (पटना) में स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. सिद्धार्था रेड्डी ने बताया दूसरी लहर पहली कोरोना लहर से चार गुना ज्यादा प्रभावित किया। कोरोना वायरस वातावरण में रहेगा ही। यदि हम चाहते हैं कि तीसरी लहर नहीं आए या इससे छूटकारा मिले तो हमें कोविड प्रोटोकॉल के अनुसार व्यवहार करना होगा, रोग प्रतिरोधक क्षमता हासिल करनी होगी या कोरोना वायरस खुद कमजोर पड़ जाए। डॉ. रेड्डी ने तीसरी लहर में बच्चों के अधिक प्रभावित होने के सवाल पर भी विस्तार से बताया। बताया कि क्यों ऐसी आशंका जताई जा रही है। उन्होंने कहा कैलकुलेटिव थ्योरी के तहत ही बच्चों के तीसरी लहर में प्रभावित होने की बात कही जा रही है। उन्होंने कहा कि हम पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों से कोविड प्रोटोकॉल का पालन नहीं करवा सकते हैं। ऐसे में हम अभिभावकों को ही सतर्क रहना होगा। विशेष ध्यान रखना होगा।

Advantage Care App लांच, एक क्लीक पर मिलेगी स्वास्थ्य सेवा

बच्चों और किशोरों के खराब मानसिक स्वास्थ्य, शिक्षा में व्यवधान, आय की हानि और घरेलू हिंसा, कोविड-19 के कुछ चिंताजनक परिणाम हैंः डाॅ. अपराजिता गोगोई

डॉ. अपराजिता गोगोई

सेंटर फॉर कैटेलाइजिंग चेंज(सी 3) की कार्यकारी निदेशक डॉ. अपराजिता गोगोई ने चर्चा में अपनी बात रखते हुए कहीं कि बच्चों और किशोरों के खराब मानसिक स्वास्थ्य, शिक्षा में व्यवधान, आय की हानि और घरेलू हिंसा, कोविड-19 के कुछ चिंताजनक परिणाम है। कोरोना महामारी के शुरू होने के बाद उन्होंने चार-पांच सर्वे किए। इसमें पता चला कि किशोरियों की ट्रैफिकिंग बढ़ गई है। 30 हजार बच्चियों और महिलाओं पर किए गए सर्वे के दौरान बिहार में 78 प्रतिशत कम्युनिटी मेंबर ने कहा कि उनकी घरवालों की नौकरी चली गई या दिहाड़ी बंद हो गई। 25 प्रतिशत ने कहा कि उनके उत्पाद की बिक्री नहीं हो रही है। ऐसे में घर के बच्चों पर इसका असर पड़ेगा ही। क्योंकि आय कम होने के बाद बच्चों पर ही प्रभाव पड़ता है। इस महामारी में बच्चों और महिला के साथ हिंसा बढ़ गई है। बच्चियों को घर का काम करना पड़ रहा है। अनुमान है कि बाल विवाह भी बढ़ेगा। अनुमान के मुताबिक भी अगले 10 वर्ष में 30 मिलियन बाल विवाह बढ़ जाएंगे। जो बच्चियां अनाथ हो गई हैं उनके देखभाल के लिए उनकी शादी की बात चल रही है। डॉ. गोगोई ने कहा कि जब स्कूल खुलेगा तो लॉस ऑफ लर्निंग की समस्या आएगी। इसे मैनेज करना होगा।

स्कूल सिर्फ पढ़ने की जगह नहीं: डाॅ. मनीष कुमार

डॉ. मनीष कुमार

कार्यक्रम में पारस एचएमआरआई अस्पताल(पटना) में कंसल्टेंट मनोचिकित्सक डॉ. मनीष कुमार ने कहा कि यह बच्चों के लिए बहुत मुश्किल दौर है। स्कूल सिर्फ पढ़ने की जगह नहीं होती है। बच्चों के लिए वहां बहुत कुछ होता है। बच्चें वहां दोस्तों से मिलते हैं। अपनी परेशानियां साझा करते हैं। डॉ. मनीष ने एक काल्पिनिक उदाहरण दिया कि कोरोना की वजह से यदि घर में किसी की मौत हो गई और बच्चे स्कूल जाते होते तो वो जल्द इस मानसिक परेशानी की दौर से निकल पाते।

डॉ. मनीष ने बताया कि शोध के मुताबिक हर चार से पांच बच्चे में कोई-न-कोई मनोरोग रोग होता है। यह शैशवस्था में होता है। ऐसे में अभिभावक को इस समस्या को जल्द पहचान कर लेना चाहिए ताकि बच्चा ताउम्र अच्छे से जीवन गुजार सके। उन्होंने बताया कि बच्चों व किशोर का तनाव से निकलने का तरीका व्यस्क से अलग होता है। बच्चों में तनाव का लक्षण पेट में दर्द, भारीपन आदि हो सकता है। यदि शारीरिक जांच में कोई समस्या नहीं निकले तो मनोचिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए। अभी बच्चे ऐसे आ रहे हैं जिन्हें कोरोना नहीं है, लेकिन वो कोविड मरीज की तरह व्यवहार करते हैं। उन्हें लगता है कि सांस लेने में दिक्कत हो रही है। मेरा मानना है कि पब्लिक एजुकेशन सिस्टम को मजबूत करने की आवश्यकता है। स्कूल फीस का मामला सुलझाया जाए। अभिभावक मार्गदर्शन कार्यक्रम की आवश्यकता है।

पारम्परिक मीडिया के मूल्यांकन के लिए सोशल मीडिया आ चुका है

मानसिक परेशानी बड़ा मुद्दा: सुक्ति अनंता

सुक्ति अनंता

परिचर्चा में किशोर व स्कूल बच्चे की आवाज बन कर द वाईपी फाउंडेशन की सुक्ति अनंता ने हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि किशोर या बच्चों के लिए मानसिक परेशानी सबसे बड़ा मुद्दा है। हम जैसे लोग परेशान हैं। घबराहट और तनाव है। भविष्य को लेकर आशंकित हैं। महामारी की वजह से लोग बाहर नहीं जा पा रहे हैं। किसी तरह का उपचार थेरेपी आदि नहीं ले पा रहे हैं। हालांकि हल ढ़ूढा जा रहा है। ऑनलाइन थेरेपी एक तरीका हो सकता है।

अनूप शर्मा

ऑनलाइन क्लास पर सुक्ति ने कहा कि हमलोग के लिए ऑनलाइन क्लास बिल्कुल नई बात थी। इसका वातावरण स्कूल की तरह समान नहीं होता है। पढ़ाई का यूट्यृब माध्यम एक तरफा है। मैं विज्ञान की छात्रा हूं। ऐसे में मेरे लिए गणित या भौतिकी का कांसेप्ट समझना काफी मुश्किल होता है।

By Editor


Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (0) in /home/naukarshahi/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427