उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं। लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद उन्होंने शनिवार को अपने मंत्रियों की पहली बैठक बुलाई थी, जिसमें उनके दो उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य तथा बृजेश पाठक नहीं पहुंचे। दोनों दिल्ली में हैं। बैठक अचानक नहीं बुलाई गई थी। शुक्रवार शाम को ही इसकी सूचना पत्रकारों को मिल गई थी। एक दिन पहले सूचना के बाद भी दो उप मुख्यमंत्रियों के नदारद रहने से उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। योगी आदित्यनाथ की कुर्सी बचेगी या जाएगी, इस पर चर्चा तेज हो गई है। यही नहीं उत्तर प्रदेश में पार्टी के सिर्फ 33 सीटों पर सिमट जाने के बाद तथाकथित सबसे अनुशासित पार्टी भाजपा में एक –दूसरे पर खुल कर आरोप लगाए जा रहे हैं। पार्टी के भीतर का कलह मीडिया में आने लगा है।
चुनाव में भाजपा को मिली करारी हार के लिए भाजपा का एक हिस्सा योगी आदित्यनाथ को जिम्मेदार बता रहा है, तो योगी समर्थक हार के लिए केंद्रीय नेतृत्व को जिम्मेदार बता रहे हैं। योगी विरोधी कह रहे हैं कि योगी ने पूरी मेहनत नहीं की। वाट्सएप पर योगी की आलोचना की जा रही है। कहा जा रहा है कि योगी ने जरूरत से ज्यादा हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण पर जोर दिया। पेपरलीक जैसे मुद्दे पर चुप रहे। विपक्ष के उठाए जा रहे सवालों का जवाब नहीं दिया। कई प्रत्याशियों ने कहा है कि वे इंडिया गठबंधन से नहीं हारे, बल्कि अपनी ही पार्टी के भीतरघात से हारे। उनका इशारा योगी समर्थकों की ओर है। वे हार का ठीकरा योगी समर्थकों पर फोड़ रहे हैं।
वहीं योगी समर्थकों का कहना है कि टिकटों का बंटवारा योगी के सुझावों के अनुसार नहीं किया गया। जो अलोकप्रिय सांसद थे, उन्हें ही टिकट दिए गए। कहा जा रहा है कि योगी ने एक सूची भेजी थी, लेकिन केंद्र ने उनकी सूची को महत्व नहीं दिया। उनके पसंदीदा नेताओं को टिकट नहीं दिया गया।
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अब बैठक में दो उप मुख्यमंत्रियों के बैठक से नदारद रहने को बी उसी कलह से जोड़ कर देखा जा रहा है। जब कल ही एनडीए की बैठक खत्म हो गई, मुख्यमंत्री लौट आए, तो उपमुख्यमंत्री क्यों नहीं लौटे। इसे योगी की कुर्सी खतरे में पड़ने से जोड़ कर देखा जा रहा है।