पंचायत चुनाव पर कानूनी संकट अध्यादेश की तैयारी में सरकार
बिहार में पंचायतों का कार्यकाल 15 जून को खत्म हो रहा है. कोरोना के गंभीर संकट व लॉकडाउन के कारण समय सीमा के अंदर चुनाव करा पाना संभव नहीं है. लिहाजा पंचायती राज विभाग चुनाव टालने और पंचायतों का कार्य नौकरशाही के हवाले करने के लिए अध्यादेश लाने की तैयारी कर रहा है.
जन प्रतिनिधियों का कार्यकाल ( 15 जून) समाप्त होने के बाद उनके कार्यों की जिम्मेदारी विकास अधिकारियों अथवा डीएम के हवाले करने की बात चल रही है. इसके लिए पंचायती राज अधिनियम में संशोधन की जरूरत पड़ेगी.
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उधर राज्य निर्वाचन आयोग ने भी यह तय कर लिया है कि फिलवक्त जो आपदा है उस दौरान में चुनाव संभव नहीं जबकि जुलाई महीने में मानसून के आगमन के कारण अनेक जिलों में बाढ़ की स्थिति के मद्देनजर चुनाव कराना मुम्किन नहीं है. हालांकि इसके पहले राज्य निर्वाचन आयोग ने 21 अप्रैल को 15 दिनों का समय लिया था और कहा था कि हालात की समीक्षा के बाद चुनाव के संबंध में कोई फैसला लिया जायेगा.
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दूसरी तरफ मदरास हाईकोर्ट ने चुनावों के दौरान कोरोना संक्रमण पर चुनाव आयोग के खिलाफ हत्या का एफआईआर दायर करने की धमकी दी थी. इसका प्रभाव भी बिहार के पंचायत चुनावों पर पड़ता दिख रहा है.
ऐसे में अब ऐसा लग रहा है कि किसी भी हाल में बिहार में पंचायतों का चुनाव अक्टूबर से पहले संभव नहीं है.
माना जा रहा है कि पंचायती राज विभाग इस संबंध में एक अध्यादेश कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेजेगा. फिर सरकार की तरफ से इस सबंधं में आखिरी फैसला लिया जायेगा. राज्य सरकार इस बारे में जल्द ही फैसला लेगी.
गौरतलब है कि बिहार में पंचायती राज संशोधित अधिनियम के तहत 2001 में पहला चुनाव हुआ. इस अधिनियम के तहत पंचायत प्रतिनिधियों को काफी शक्ति दी गयी और उन्हें के द्वारा विकास कामों को किया जाने लगा .