Bureaucrat के कहने पर 68 गांव के बच्चों ने छोड़ी गुलेल
चिडियों को बचाने के लिए लोग दाना देते हैं, बर्तन में पानी रखते हैं, पर एक Bureaucrat ने नायाब पहलकदमी ली। 68 गांव के बच्चों को समझाकर छुड़वा दी गुलेल।
शहरों में चिडियों का बचाने के लिए ऑनलाइन अभियान चलते हैं। लोगों को बॉलकनी में चिड़ियों के लिए दाना-पानी रखते भी आपने देखा होगा। लेकिन एक IFS अधिकारी आनंद रेड्डी @AnandReddyYellu ने बिल्कुल नायाब पहलकदमी ली। उन्होंने 68 गांव के बच्चों के बीच अभियान चलाया। बच्चों को समझाया कि गुलेल से चिड़ियों को मारना ठीक नहीं। उन्होंने प्रकृति की विविधता की रक्षा की बात इतने रचनात्मक ढंग से बच्चों को समझाई कि 68 गांव के बच्चों ने 590 गुलेल समरप्ति कर दिए। अब वे गुलेल लेकर सुबह-शाम छोटे-छोटे पक्षियों की जान नहीं लेते, बल्कि पक्षियों के दोस्त बन गए हैं।
The Better India (द बेटर इंडिया) ने ट्वीट करके यह जानकारी साझा की, तो आईएफएस अधिकारी की सरहना में अनेक लोगों ने ट्वीट किए। द बेटर इंडिया ने लिखा है कि नासिक के निकट के गांवों में बच्चे गुलेल लेकर चिड़ियों का शिकार करते थे। गुलेल लेकर बच्चों को पक्षियों का शिकार करते देखना आम था। बच्चे गुलेल से चिड़ियों पर पत्थर मारते थे, जिससे चिड़िया घायल हो जाती थी। कई बार चिड़िया की जान भी चली जाती।
द बेटर इंडिया ने लिखा है कि बच्चे चिड़ियों को घायल करना नहीं चाहते थे, लेकिन यह उनके खेल का हिस्सा बन गया था। वे निशाना लगाते। आईएफएस आनंद रेड्डी ने सोशल मीडिया पर अभियान चलाया। एक साधारण सवाल पूछा कि क्या आप बच्चों को ऐसा करने के लिए सजा देंगे?
आनंद रेड्डी ने कहा कि हालांकि चिड़ियों को मारने से जंगल सूने हो जाएंगे, फिर भी बच्चों को सजा देना समाधान नहीं है। बच्चे का गुलेल छीन लेना भी समाधान नहीं है। वे आसानी से दूसरा गुलेल बना लेंगे। आनंद रेड्डी ने सुझाव दिया कि बच्चों से बात करें। उन्हें समझाएं कि चिड़ियों को घायल करना कितना दर्दभरा है। चिड़िया भी तुम्हारी तरह रोती है। बच्चों से प्रतिज्ञा कराएं कि चिड़ियों को वे आगे से घायल नहीं करेंगे। अंत में बच्चों से निवेदन करें कि वे स्वेच्छा से गुलेल समर्पित कर दें।
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एक महीना पहले विश्व पर्यावरण दिवस पर आनंद रेड्डी ने पहलकदमी ली। उन्होंने अपनी पहलकदमी का नाम दिया- गुलेल समर्पण अभियान। इसके बाद ग्रीन वारियर्स ने गांव-गांव जाकर बच्चों से मिले। अभियान की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि इतने कम दिनों में 68 गांवों के बच्चों ने 590 गुलेल समर्पित कर दिए हैं।
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