दलित महिला ने टंकी से पानी पीया, सवर्णों ने गौमूत्र से शुद्ध किया
अभी तो मनुस्मृति लागू नहीं हुई है, तब इतनी दकियानूसी तथा दलितों से नफरत! एक दलित महिला ने सार्वजनिक टंकी से पानी पीया, तो सवर्णों ने गौमूत्र से शुद्ध किया।
देश में सिर्फ धार्मिक नफरत ही बढ़ता नहीं दिख रहा, बल्कि जातीय भेदभाव और नफरत के नए-नए रूप देखने को मिल रहे हैं। 1927 में महाड़ में सार्वजनिक तालाब से दलितों को पीने का पानी लेने के लिए डॉ. आंबेडकर ने आंदोलन किया था। आज 95 साल बाद भी आंबेडकर का सपना पूरा नहीं हुआ है। बल्कि भेदभाव और शोषण नए रूपों में सामने आ रहा है। अब एक सार्वजनिक टंकी से दलित महिला ने पानी पी लिया, तो सवर्णों ने पूरी टंकी का पानी खाली किया। फिर गौमूत्र से टंकी को धो कर पवित्र किया।
हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक कर्नाटक के चामाराजा नगर जिले के हेगाटोरा गांव में दलित टोले में शादी थी। शादी में दूसरे गांव से आई एक दलित महिला ने सवर्णों के इलाके में बनी सरकारी पानी टंकी के नीचे लगे नल से पानी पी लिया। इससे स्थानीय सवर्ण नाराज हो गए। उन्होंने पूरी टंकी का पानी निकाल कर बहा दिया। इसके बाद गौमूत्र से टंकी की धुलाई करके पवित्र किया।
जातीय भेदभाव की इस घटना का वीडियो वायरल होने पर प्रशासन हरकत में आया। हिंदुस्तान टाइम्स लिखता है कि प्रशासन ने घटना की जांच की और घटना को सही पाया। इसके बाद सोशल वेलफेयर विभाग के अधिकारी घटना स्थल पहुंचे तथा ग्रामीणों को समझाया कि यह पानी टंकी सार्वजनिक है और यहां कोई भी पानी पी सकता है। खबरों के मुताबिक अधिकारियों ने कुछ दलित युवकों को बुला कर उक्त टंकी से पानी पिलवाया।
सोशल मीडिया में खबर के आने के बाद हर वर्ग के लोग ऐसे जातीय भेदभाव की निंदा कर रहे हैं। एक तरफ भारत की सभ्यता-संस्कृति की इतनी सराहना की जाती है, वहीं पर यह घटना आईना दिखा रही है कि समता और बराबरी वाले समाज की स्थापना के लिए कितना कुछ करना शेष है।
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