हक की बात- अमेरिकी अहंकार को अफगानियों ने खाक में मिलाया
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महाशक्ति अमेरिका का राष्ट्रपति जब कहे कि-
‘अभी कितने और, कितने हजार अमेरिकी बच्चों की जान को आप खतरे में डालना चाहते हैं? मैं अमेरिका की एक और पीढ़ी को अफगानिस्तान में जंग के लिए नहीं भेजूंगा.
अफगानिस्तान में 20 सालों से जमे अमेरिकी सैनिकों के 90 प्रतिशत जवानों और अफसरों ने अफगानिस्तान छोड़ दिया हैं. उन पर तालिबान का इतना भयावह खौफ है कि कि वह एयरपोर्ट की बत्ती बुझा कर रात के अंधेरे में फुर्र हो रहे हैं.
2001 में न्यूयार्क के ट्रेड टावर पर हवाई हमले रेत के खंडर में बदल दिये जाने के बाद अलकायदा नामक संगठन को नेस्तनाबूद करने के उद्देश्य से अमेरिकी सैनिकों को अफगानिस्तान में उतारा गया. तब के राष्ट्रपति ने दावा किया था कि वह अफगानिस्तान को बचाने और वहां शांति स्थापित करने के लिए अपनी फौज भेज रहे हैं. जबकि इकोनामिस्ट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि अब जब अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान से जा रहे हैं, तो अभी अफागिन्सतान के आधे हिस्से पर तालिबान का कब्जा हो चुका है. अफगान सरकार बेबस है. अफगान सैनिक भाग कर पाकिस्तान में पनाह ले रहे हैं. तालिबान का दावा है कि जल्द ही वह पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लेगा.
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अपने महाशक्ति होने के गुमान को खाक में मिलता देख रहा है अमेरिका. उसके हजारों सैनिक मारे जा चुके हैं. और दो ट्रिलियन डॉलर पानी की तरह अफगानिस्तान मनें बहाया जा चुका है.
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संभव है कि बियतनाम युद्ध के बाद अमेरिका की यह शर्मनाक हार है. अमेरिकी अफगानिस्तान में इतने डरे हुए हैं कि पहले 11 सितमंबर तक अफगानिस्तान खाली करने का उसने जो फैसला किया था अब अगस्त में ही वहां से निकल लेने का फैसला हो गया है.
यह तय है कि अमेरिका के अफागनिस्तान छोड़ने के बाद वहां खून खराबा बढ़ेगा. मौजूदा राष्ट्रपति अशरफ गनी का तख्ता पलट होगा. उन्हें उसी तरह सरे राह फांसी के फंदे पर लटकाया जा सकता है जिस तरह तत्कालीन राष्ट्रति नजीबुल्लाह को बिजली के खंबे पर लटका के मार डाला गया था.
अफगान एक ऐसी लड़ाका कौम है जिसके बारे में एक किस्सा मशहूर है. कहा जाता है कि वहां पैदान होने वाले हरेक बच्चे के कान में जो पहली आवाज पहुंचती है वह तोपों की गड़गड़ाहट है. बारूद के सुरंगों में वह पलते हैं.रायफलों के साये में जवान होते हैं.
इसी लड़ाका कौम ने अमेरिका के अंहकार को आखिरकार खाक में मिला दिया है. अमेरिका के अफगानिस्तान छोड़ कर हटने की एक राजनीतिक वजह भी है. राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने चुनावी एजेंडे में कहा थि कि अगर वह सत्ता में आयेंगे तो अपने अफगानिस्तान में हर रोज मर रहे अपने सैनिकों को बाहर निकालेंगे. सोचा जा सकता है कि अमेरिकी जनता भी कितनी बेचैन थी कि वहां उनके सैनिक रिश्तेदारों को मरने के लिए और न छोड़ा जाये.
इन सब बातों के बावजूद एक बात अफसोसनाक है कि अब अफगानिस्तान में सत्ता के लिए खूनी संघर्ष होगा. कितने लोग मारे जायेंगे यह नहीं कहा जा सकता. लेकिन इसके लिए भी अमेरिका को ही जिम्मेदार माना जायेगा क्योंकि उसने अफगानिस्तान में शांति स्थापना का वचन दिया था. जो उसने पूरा नहीं किया और इस वजह से वहां गृहयुद्ध भड़कने की पूरी संभावना है.