हक की बात: जातिगत जनगणना पर तेजस्वी का मास्टर सट्रॉक
जातिगत जनगणना पर तेजस्वी यादव ने मास्टर स्ट्रॉक चला है. उनके इस दाव से भाजपा की या तो सत्ता से बेदखली तय है या उसे जातिगत जनगणनना पर राजी होना पड़ेगा.
एक तीसरा विकल्प भी संभव है. वह ये कि नीतीश कुमार भाजपा के दबाव में आ जायें और जातिगत जनगणनना ( Caste Censusu) पर अपने स्टैंड से मुकर जायें.
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इन तीनों स्थितियों पर चर्चा से पहले यह जान लेते हैं कि आखिर तेजस्वी ने कौन सा मास्टर स्ट्रॉक चला है. दर असल पिछले दिनों राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने तेजस्वी के नर्देश पर कहा था कि जातिगत जनगणनना पर नीतीश कुमार को आगे आना चाहिए और उन्हें इसे कराने के लिए घोषणा करना चाहिए. विधानसभा का मैनडेट इसके पक्ष में है. अगर भाजपा जातिगत जनगणना का विरोध करती है और नीतीश कुमार की सरकार से समर्थन वापस लेती है तो हम नीतीश कुमार को समर्थन देने को तैयार हैं.
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गौरतलब है कि पिछले दिनों नीतीश कुमार ने कहा था कि जातिगत जनगणनना पर सर्वदलीय बैठक में अंतिम फैसला लिया जायेगा. इसके लिए तमाम दलों से बात की गयी है. भारतीय जनता पार्टी का अभी इस पर जवाब नहीं आया है. उनका जवाब आते ही सर्वदलीय बैठक मे इस पर फैसला होगा.
लेकिन भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे पर टाल मोटल कर रही है. उसने सर्वदलीय बैठक के संबंध में आला कमान से दिशानिर्देश मांगा है. याद रहे कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि जातीय जनगणना नहीं करायी जायेगी.
जातिगत जनगणनना पर भारतीय जनता पार्टी को छोड़ कर पक्ष-विपक्ष के तमाम दल एक मत हैं. लेकिन अपनी सरकार की मुख्य सहयोगी भाजपा के नकारात्मक रवैये से नीतीश ऊहापोह में हैं. ऐसे में राजद ने जो दाव चला है उससे नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल युनाइटेड के साथ भारतीय जनता पार्टी भी दबाव में आ चुकीहै.
भाजपा के साथ दोहरा संकट है. एक तो वह जातिगत जनगणनना के लिए हामी भरेगी तो उसके राजनीतिक जनाधार पर भारी चुनौती खड़ी हो जायेगी. क्योंकि इस जनगणनना के जो नतीजे आयेगे उससे पता चल जायेगा कि पिछड़ी जातियों की राजनीति, सत्ता, सरकारी सेवा आदि में वास्तविक नुमाइंदगी कितनी होनी चाहिए. चूंकि भाजपा मूलरूप से अगड़ी जातियों की नुमाइंदगी करती है. ऐसे में उसके लिए जातिगत जनगणना के नतीजे भारी पड़ सकते हैं. इस मामले में दूसरा पक्ष यह हाै कि जातिगत जनगणना पर उसका स्टैंड क्लियर नहीं होता है तो नीतीश कुमार राजद के सहयोग से अपनी सरकार भी बचा सकते हैं. ऐसे में भाजपा को सत्ता से बदेखल होना पड़ेगा. उधर यूपी समेत पांच राज्यों के चुनाव में भाजपा की कमजोर स्थिति को देखते हुए वह बिहार में सत्ता से बेदखल होना भी नहीं चाहेगी.
नीतीश क्या करेंगे
नीतीश भाजपा के साथ सरकार चलाने में काफी सहजता महसूस करते हैं. यही कारण था कि 2017 में नीतीश ने राजद का साथ छोड़ कर भाजपा की मदद से सरकार बना ली थी. ऐसे में नीतीश काफी मजबूर होने के बाद ही राजद के ऑफर पर विचार करेंगे.
उधर तेजस्वी यादव के इस दाव से भाजपा और जदयू दोनों में खलबली मची है. ऐसे में ऐसा लगता है कि 14 जनवरी के बाद इस पर तस्वीर साफ हो पायेगी. राजनीतिक दल चाहते हैं कि फिलहाल खरमास है. खरमास के बाद कोई अंतिम निर्णय हो सकता है.