लाकडाउन से पीडित करोड़ों कामगारों में सरकार के खिलाफ जन आक्रोश की आशंका थी.इसलिए लोगों के क्रोध की दिशा सरकार से जमात की तरफ किया गया.
लाकडाउन से त्रस्त करोड़ों कामगारों में सरकार के खिलाफ उमड़े क्रोध से उनमें घबड़ाहट थी. उन्हें डर था कि कोरोना वायरस से ज्यादा लाकडाउन में भूख व सफर में दम तोड़ने वाले गरीबों में नाराजगी की लौ सुलग रही है. गरीब कामगारों की इस सुलगती नाराजगी की दिशा को मोड़ने का उन्हें मंत्र चाहिए था.
उनके खिलाफ क्रोध की दिशा मोड़ने का रास्ता उनके तलवेचाट ऐंकरों ने निकाला. उन्होंने मरकज को खोज निकाला. ‘मरकज’ कहने भर से जो संदेश जाता है वह आप समझ रहे हैं ना?
मीडिया के ऐंकरों और उनके द्वारा इस्तेमाल किये गये हेडलाइन्स को याद कीजिए- कोरोना जिहाद, धर्म के ऩाम पर अधर्म, आदि. फिर याद कीजिए कि चीखते हुए ऐंकर कैसे कह रहे थे कि मरकज में छिपे हैं कोरोना जिहादी. नफरत और जहर भरे इन शब्दों का कितना खतरनाक असर भेले भाले हिंदुओं पर पड़ा इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि लोग सोशल मीडिया पर मुसलमानों के खिलाफ भद्दी गालियों का इस्तेमाल करने लगे. उनके मान पटल पर बैठ गया कि कोरोना संक्रमण के जिम्मेदार मुसलमान हैं. वहीं दूसरी तरफ स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी लव अग्रवाल को हर दिन प्रेस ब्रिफिंग के लिए भेजा जाने लगा और वह कोरना संक्रमण के लिए जमातियों का कितना अनुपात है, ये भी बताने लगे. बस सरकार जो चाहती थी वह हो गया. लोगों के गुस्सा की दिशा सरकार की तरफ से मुड कर मुसलमानों की तरफ चली गयी.
हरिद्वार में फंसे 1800 गुजरातियों को एसी बसों में भर कर लाकडाउन की धज्जी उडाते हुए अहमदाबाद तक पहुंचाना, पश्चिम बंगाल में हजारों श्रद्धालुओं का पूजा करना. या छठी मैया का पवित्र अर्घ्य के आयोजन में हिस्सा लेना. सब जायेज है. पर मरकज के बार बार लिखित आवेदन के बावजूद जमातियों को मरकज में घेरे रखना किस मंशा को दर्शाता है?
लाखों कामगारों की भुखमरी पर पर्दा डालने के लिए मरकज को बनाया इश्यु
पर अखबारों के इंट्रो देखिए- ‘जमातियों से फैला एक तिहाई कोरोना संक्रमण’
बस उनके मिशनरी ऐंकरों और अखबार के एडिटरों ने उनका काम पूरा कर दिया.अब देश के अंदर सरकार के खिलाफ उपज रहे गुस्सा की दिशा जमातियों की तरफ मुड़ चुकी है. उनका अभियान तमाम हुआ.
सरकार मस्त. बेफिक्र.
इन ऐंकरों को मैग्सेसे अवार्ड भले ना मिले. भारत रत्न के अलावा तमाम असैनिक सम्मान के दरवाजे उनके लिए खुल गये हैं.
तो अब जमातियों का क्या होगा?
क्रोनोलॉजी समझिए. मौलाना साद को विलेन बनाने का खेल चलता रहेगा. यद्यपि मौलाना का बाल बांका नहीं होगा. क्योंकि तबलीगी जमात देश के किसी कथित राष्ट्रभक्त संगठन से ज्यादा देशभक्त है. भले ही पालतू ऐंकर चीखते रहे हैं कि मौलाना फरार हैं. पर आप आश्वस्त रहिए कि मौलाना अपने दफ्तर में क्वरंटाइन में हैं और कल ही पुलिस के नोटिस में दिये 26 सवालों का मुंहतोड़ जवाब दे चुके हैं और पुलिस अपना माथा नोच रही है.
समय बीतेगा. कोरोना संकट टलेगा. तो सारे केस भी वापस कर लिये जायेंगे.