जिनके नहीं रहने से मोदी हुए फेल, उन्हें Stalin ने अपने साथ जोड़ा

जीडीपी माइनस चल रही है। मोदी सरकार को कोर्ट में कहना पड़ा कि खजाना खाली है, कोविड से मरे लोगों को मुआवजा नहीं दे सकते। अर्थव्यवस्था को कौन सुधारेगा?

कुमार अनिल

यह माना जाता रहा है कि मोदी सरकार में बौद्धिक लोगों की कमी है। हार्वर्ड बनाम हार्ड वर्क के बाद रघुराम रामजन को दुबारा सरकार ने मौका नहीं दिया, जबकि वे भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था के सूत्रधारों में एक रहे हैं। देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम को भी एक समय वित्त मंत्रालय छोड़ना पड़ा।

इन दोनों अर्थशास्त्रियों को मोदी सरकार में भले ही काम का मौका नहीं मिला, पर तमिलनाडु की Stalin सरकार ने एक आर्थिक सलाहकार परिषद बनाया है, जिसमें इनके साथ ही नोबेल विजेताओं को रखा गया है। तमिलनाडु ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।

नोबेल पुरस्कार प्राप्त अर्थशास्त्रियों अमर्त्य सेन से लेकर अभिजीत बनर्जी तक मोदी सरकार की नीतियों के आलोचक रहे हैं। ज्यां द्रेज जैसे अर्थशास्त्री, जिनका भारत की गरीबी और उसके निदान पर गहरा अध्ययन है, इन्हें कभी तव्ज्जो नहीं दिया गया। अब हालत ऐसी हे गई कि कल तक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला भारत आज माइनस में चल रहा है। खुद भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि उसके पास इतने पैसे नहीं हैं कि कोविड से मरे लोगों को नुआवजा दिया जा सके।

तमिलनाडु की डीएमके-कांग्रेस सरकार ने राज्य के आर्थिक विकास, औद्योगिकीकरण के लिए एक सलाहकार परिषद बनाई है, जिसमें नोबेल पुरस्कार विजेता एस्थर डुफ्लो, रघुराम राजन, अरविंद सुब्रमण्यम और ज्यां द्रेज को सम्मान के साथ रखा गया है।

ज्यां द्रेज गरीबी उन्मूलन की दिशा में कार्य करते रहे हैं। इनके रहने से कमेटी में एक संतुलन भी होगा। अगर फ्री मार्केट पर ज्यादा जोर बढ़ेगा, तो संतुलन के लिए ज्यां द्रेज होंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि टीम संपूर्ण लगती है।

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इस तरह कोविड के बाद लड़खड़ाई अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए ऐसी पहल करनेवाला तमिलनाडु पहला प्रदेश बन गया है। बिहार सहित कई प्रदेश दिशाहीन लगते हैं। वे बस दिन काट रहे हैं और मान कर चल रहे हैं कि कोविड कमजोर होने पर अर्थव्यवस्था खुद-ब-खुद ठीक हो जाएगी। उन्हें कुछ खास सोचने-करने की जरूरत नहीं है।

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By Editor


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