Justice S Murlidhar को हटाना बताता है कि देश को तबाही की गर्त में ढ़केलने वालों के ठेंगे पर है कानून
by Irshadul Haque
दिल्ली हाई कोर्ट के Justice S Murlidhar का ट्रांस्फर कर दिया गया. बजाहिर इसलिए कि उन्होंने दिल्ली के असल दंगाइयों की भूमिका पर सवाल उठाया था. उन्होंने भाजपा के तीन नेताओं-किपल मिश्रा, अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा जैसे नेताओं ने जो जहर पिछले कुछ दिनों में उगला और जिसका बाद दिल्ली में दंगा हुआ. उसे जस्टिस मुरलीधर ने गंभीर लिया. उन्होंने कहा था कि अब तक उनके खिलाफ एफाईआर क्यों नहीं दर्ज की गयी. उन्होंने यहां तक कहा था कि हम गुस्सा नहीं हैं पर पीड़ा जाहिर कर रहे हैं जिसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए.
याद रखनी की बात है कि कपिल मिश्रा ने दिल्ली पुलिस को चुनौती दी थी कि तीन दिन में नागरिकता संशोधन के खिलाफ धरना दे रहे लोगों ने सड़क खाली नहीं की तो हम सड़क पर उतरेंगे. उसके कुछ ही घंटों बाद संघी गुंडे सड़क पर उतर गये और हिंसा शुरू कर दी थी.
जस्टिस मुरलीधर ने सरकार पर दबाव बनाया था कि कपिल मिश्रा जैसे लोगों पर एफआईआर दर्ज की जाये. उन्होंने यहां तक कहा था कि हम दिल्ली में 1984 जैसे दंगे के हालात नहीं बनने देंगे. लेकिन उनके इस कथन के चंद घंटों बाद ही कानून मंत्रालय ने उनका तबादाल दिल्ली से कर दिया.
जस्टिस मुरलीधर के तबादले पर कानून मंत्री अपने थोथे तर्क दे रहे हैं पर पूरा देश जान चुका है कि सत्ता में बैठी कुछ शक्तियां देश के कानून को अपने जूते की नोक पर रखती हैं. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू का यह बयान काबिले जिक्र है कि जस्टिस मुरलीधर की जज के रूप में नियुक्ति का भी विरोध किया गया था. सिर्फ इसलिए कि वह तमिल मूल के हैं.
हक और इंसाफ के लिए आवाज उठाने वाले मुरलीधर पहले जज नहीं जिनके साथ ऐसा सुलूक हुआ है. इससे पहले जस्टिस लोया के साथ हुई घटना भी कुछ ऐसे ही थे. जस्टिस लोया ने गृहमंत्री पर निशाना साधा था. शोहराबुद्दीन शेख हत्या मामले में गृहमंत्री अमित शाह को बुक किया गया था. जस्टिस लोया की संदिग्ध स्थितियों में मौत हो गयी थी. बताया गया था कि उनका हर्ट अटैक हुआ था. लेकिन इससे जुड़ी दूसरी सच्चाइयों सामने नहीं आ सकी थीं.
हमें याद रखना होगा कि जब देश में इंसाफ को, सच्चाई को, ईमानदारी को, और देश के कानून को सरे आम बेशर्मी से नीलाम किया जायेगा तो समझ लीजिए कि देश का वजूद खतरे में है. इससे पहले दो उदाहरण अभी ताजा हैं जब हमने देखा कि एक खास विचारधारा के गुंडों ने जेएनयू के छात्रों पर जानलेवा हमला किया तो उनके खिलाफ न एफआईआर हुए न उन्हें गिरफ्तार किया गया. दूसरा कपिल मिश्रा के जहरीले भाषण से दिल्ली जलने लगी लेकिन उस पर कार्रवाई करने की बात अगर जस्टिस मुरलीधर ने की तो रांतोंरात उनको हटा दिया गया. कानून के पालन की शपथ ले कर ऊंची कुर्सियों पर बैठे नेता जब देश के कानून की धज्जी उड़ाते हैं तो अब भी अगर हम यह मानने का मुगालता पाल रहे हैं कि देश बचा हुआ है तो हम नादान हैं.