मोदी के बारे में हल्की बात करने पर टीवी विशेष कार्यक्रम आयोजित करते हैं। मणि शंकर अय्यर और जिग्नेश मेवानी की टिप्पणियाँ ताज़ा मिसाल हैं। हालाँकि मेवानी की टिप्पणी को आपत्तिजनक कहना सही नहीं लगता

ओम थानवी, वरिष्ठ पत्रकार

लेकिन जब मोदी के श्रीमुख से हल्की बात निकले तब? मोदी ने अभी चंद रोज़ पहले पूर्व प्रधानमंत्री, पूर्व उपराष्ट्रपति, पूर्व सेनाध्यक्ष आदि को देशद्रोही गतिविधि के आरोप में लपेट लिया था। देशद्रोह का शक क्या मामूली गाली थी?

मोदी ही थे जिन्होंने केजरीवाल को AK-49 कहा और नक्सलवादी भी।अक्सर आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली राइफ़ल AK-47 को प्रतिद्वंद्वी नेता से जोड़ने का क्या सबब था, किसी ने पूछा? नीतीश कुमार (जो अब उनके जोड़ीदार हैं) के DNA तक में उन्होंने समस्या देखी। मामूली आक्षेप था? 50 करोड़ की गर्लफ़्रेंड? सोनिया गांधी के लिए जरसी गाय, राहुल के लिए हाइब्रिड बछड़ा? पार्टी के अन्य नेताओं के ख़िलजी वंशज मार्का बयान अभी छोड़ दीजिए।

अब देखिए नीच प्रयोग को। मणि और मोदी दोनों अहिंदी भाषी हैं, हालाँकि गुजराती भाषा हिन्दी से बहुत दूर नहीं मानी जाती। फिर भी दोनों बहुत सम्भव है कि हिंदी की बारीकियाँ न जानते हों। जैसे यह कि नीच शब्द एक समाज को नीचा दिखाने के लिए गढ़ा गया होगा।

मणि ने नीच आदमी कहा, जिसमें मोदी ने जाति शब्द जोड़ कर भाषणों में कांग्रेस के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया।

पर ख़ुद मोदी ने मई 2014 में, अपने लोकसभा चुनाव-प्रचार में वाल्मीकिनगर (बिहार) में एक बार नहीं, पाँच बार नीच शब्द का इस्तेमाल किया था, कांग्रेस की ‘नीच राजनीति’ और ‘नीच (राजनीतिक) कर्म’ शब्दों को दुहराते हुए। जबकि इससे एक रोज़ पहले डुमरियागंज (उप्र) में बोलते हुए प्रियंका गांधी के अमेठी में दिए नीची राजनीति वाले बयान (ठीक-ठीक शब्द क्या थे यह स्पष्ट नहीं होता, अलग-अलग रिपोर्टिंग हुई) की उन्होंने अपनी “नीची जाति” से जोड़कर ख़ूब मलामत की थी। ठीक यही उन्होंने मणि के बयान पर किया।

जो ख़ुद संवेदनशील प्रयोगों में ऐसी छूट लें और दूसरों को उन्हीं प्रयोगों के लिए हड़का कर सहानुभूति बटोरें, हिक़ारत पैदा करें – टीवी वाले कभी गालीगलौज के इस पहलू की ख़बर भी लेंगे?

By Editor


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