पालतू मीडिया जो भी कहे, इन तीन कारणों से BJP संग नहीं जाएंगे नीतीश
पालतू मीडिया जो भी कहे, इन तीन कारणों से BJP संग नहीं जाएंगे नीतीश। भाजपा भीतर से डरी हुई है। वह जानती है बिहार में उसे भारी नुकसान होने जा रहा है।
जिस दिन नीतीश कुमार ने भाजपा से नाता तोड़कर लालू प्रसाद से हाथ मिलाया, पालतू मीडिया उसी दिन से उनके पाला बदलने की भविष्यवाणी कर रहा है। हर बार उसकी बात फर्जी निकलती है, लेकिन उसकी बेशर्मी देखिए कि वह माफी भी नहीं मांगती और दो दिन बाद फिर नया शिगूफा छोड़ती है। दरअसल पालतू मीडिया भाजपा के एजेंडे पर काम करता है और उसका मकसद है नीतीश कुमार और विपक्ष की प्रतिष्ठा को कम करना।
नौकरशाही डॉट कॉम की समझ है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तीन कारणों से भाजपा नहीं जाएंगे। पहली बात यह है कि नीतीश कुमार को देने के लिए भाजपा के पास कुछ नहीं है। इसे इस तरह भी समझ सकते हैं कि नीतीश कुमार भाजपा के साथ जाएंगे, तो उन्हें मिलेगा क्या। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं और इंडिया गठबंधन के साथ रहते हुए उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी ज्यादा सुरक्षित है। राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद या तेजस्वी यादव की तरफ से कोई दबाव नहीं है। खुद तेजस्वी जल्दी में नहीं हैं। वे बार-बार कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री के नेतृत्व में राज्य सरकार बेहतर कार्य कर रही है। अगर नीतीश कुमार भाजपा के साथ जाएंगे, तो भी मुख्यमंत्री रहेंगे, बल्कि कम सुरक्षित रहेंगे। यह कहना कि नीतीश कुमार उप राष्ट्रपति बनने के लिए जाएंगे इस बात में कोई दम नहीं है। उप राष्ट्रपति बनने का अर्थ है कि उनकी सक्रिय राजनीति का खत्म हो जाना।
नीतीश कुमार के भाजपा के साथ नहीं जाने की दूसरी वजह है नई भाजपा, जिसके नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमिस शाह हैं। नीतीश जानते हैं कि इस भाजपा के साथ जाने का मतलब है अब अपनी आजादी खत्म करना। सबसे बड़ी बात कि खुद उनकी छवि को बड़ा दाग लग जाएगा। उन पर से भरोसा खत्म हो जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी की राजनीति जनता के मुद्दों पर नहीं, बल्कि भावनात्मक मुद्दों पर होती है। भाजपा के साथ जाने का अर्थ है पिछड़ों, दलितों की राजनीति को खत्म करना।
नीतीश कुमार के भाजपा के साथ नहीं जाने का तीसरा और सबसे बड़ा कारण यह कि राजद, कांग्रेस के साथ उनके सांसदों और विधायकों के जीतने की अधिक संभावना। अभी तक 16 में सिर्फ एक सीतामढ़ी के जदयू सांसद ने भाजपा की सराहना की, जिनका टिकट भाजपा से सेट माना जा रहा है। बाकी सारे सांसद लालू प्रसाद के सहयोग से चुनाव लड़ना चाहते हैं। 2015 में लालू और नीतीश की जोड़ी ने दिखा दिया है। प्रधानमंत्री मोदी बिहार में रैली करते रहे, लेकिन लालू-नीतीश की जोड़ी उन पर भारी रही। दोनों के मिलने से जीत की संभावना बढ़ जाती है। उधर भाजपा पिछड़ जाती है, इसीलिए भाजपा घबराई हुई है। आज नीतीश-लालू के साथ माय समीकरण के अलावा दलितों का एक बड़ा हिस्सा, अतिपिछड़ों का एक हिस्सा और पिछड़ों का एक तबका उनके साथ है। इनके पास कुछ सवर्ण नेता भी है, जो अपने क्षेत्र में अपने समाज का वोट लाने में भी सक्षम हैं। इस तरह सिर्फ चुनाव जीतने के नजरिये से भी देखा जाए, तो नीतीश कुमार लालू प्रसाद के साथ रह कर ज्यादा सफल रहेंगे। नीतीश कुमार के विधायक और सांसद भी चाहते हैं कि यही समीकरण रहे।
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