गुजरात में मोदी-राहुल की चुनावी टक्कर के शोर में यह खबर गुम हो गयी कि वहां नीतीश के 38 प्रत्याशियों का क्या अंजाम हुआ. इन प्रत्याशियों का जो हाल हुआ वह नीतीश के लिए निराशजनक तो है ही, उनकी छवि के लिए भी चिंताजनक है.
आश्चर्य की बात इस लिए भी है कि नीतीश कुमार के कुल 38 प्रत्याशियों को जितने वोट मिले उससे 15 गुणा ज्यादा वोट नोटा को पड़े. इतना ही नहीं, न सिर्फ जदयू के तमाम उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गयी बल्कि उन सभी उम्मीदवारों के खाते में कुल जमा 28 हजार वोट नसीब हुए.
हालांकि इस मामले में नीतीश से अलग हुए शरद यादव उनसे बाजी मार गये. जो छोटू भाई वासवा पहले जदयू के विधायक हुआ करते ते उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाई. उनकी पार्टी इंडियन ट्राइबल पार्टी ने दो सीटें जीतीं. वासवा को शरद गुट ने अपना पूरा सहयोग दिया. इंडियन ट्राइबल पार्टी ने शरद यादव की पहल पर कांग्रेस से गठबंदन किया जिससे दोनों को लाभ मिला. जबकि नीतीश यह तय नहीं कर पाये कि वह भाजपा के संग चुनाव में हैं या उसके खिलाफ.
इस चुनाव को नीतीश ने क्यों गंभीरता से नहीं लिया इसका अभी तक पता नहीं चल सका है. हालांकि उन्होंने पिछले चुनाव में गुजरात में प्रचार किया पर इस बार अचानक उन्होंने घोषणा कर दी कि वह गुजरात चुनाव प्रचार करने नहीं जायेंगे. विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा ने उन्हें गुजरात जा कर प्रचार करने से रोका होगा. इसका नतीजा यह हुआ कि गुजरात में नीतीश कुमार के उम्मीदवारों की भारी दुर्गति हुई.