मोदी सरकार ने पेट्रोल इतिहास के सारे रिकार्ड तोड़े, जनता चुप
मोदी सरकार ने पेट्रोल के इतिहास में कीमतों के सारे रिकार्ड तोड़ दिया है. जनता इस बोझ से कराह रही है. जनता इस आर्थिक अत्याचार पर चुप क्यों है.
दिल्ली में एक समय में राज्य सरकार इसलिए दोबारा सत्ता में नहीं आ सकी क्योंकि प्याज की कीमत आसमान छू रही थी. खुद केंद्र की मनमोहन सरकार के 2014 में पतन के अनेक कारणों में एक पेट्रोल और कूकिंग गैस की महंगाई थी.
मनमोहन सरकार के वक्त पेट्रोल की कीमत 72 रुपये थी जबकि कूकिंग गैस 400 के करीब थी. आज पेट्रोल 100 रुपये प्रति लीटर के पार जा चुकी है जबकि कूकिंग गैस की कीमत एक हजार के करीब है.
ऐसा नहीं है कि पेट्रोल का अंतरराष्ट्रीय मूल्य में बेतहाशा इजाफा हुआ है. आज भी अगर केंद्र सरकार की इक्साइज ड्युटी और राज्यों के वैट को किनारे कर दें तो भारत में कहीं भी पेट्रोल की कीमत 27 रुपये प्रति लीटर से ज्यादा नहीं होगी. मतलब साफ है कि सरकारों के टैक्स और डीलर्स का कामीशन ही सिर्फ करीब 73 रुपये प्रित लीटर हो जाते हैं.
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अभी हाल ही में दैनिक भास्कर ने एक रिपोर्ट में लिखा था कि इंकम टैक्स और कार्पोरेट टैक्स से भी ज्यादा पेट्रोल से टैक्स प्राप्त कर रही है मोदी सरकार. ऐसे में यह साफ है कि केंद्र सरकार का उद्देश्य पेट्रोल से बेतहाशा राजस्व वसूलने की है और उसे जनता की कोई भी चिंता नहीं है.
ऐसे में सवाल यह है कि देश की जनता इस बेतहाशा महंगाई को चुपचाप क्यों बर्दाश्त कर रही है? जो जनता थोड़ सी महंगाई से नाराज हो कर सड़कों पर उतर आती थी, वह अब इस आर्थिक अत्याचार को क्यों सहने को मजबूर है. क्या इसकी एक वजह यह है कि कोरोना से उत्पन्न हालात और लाकडाउन के चलते लोग सड़कों पर उतरने से गुरेज कर रहे हैं.