वरिष्ठ पत्रकार संजय वर्मा RCP के पुराने बयानों के आधार पर सवाल उठा रहे हैं कि जब मंत्रिमंडल विस्तार में कोई पेंच नहीं था तो अकेल मंत्री क्यों बने?
मंत्रीपद लेने की बात जब आई तो (RCP) आरसीपी सिंह ने खुद को मंत्रिपद के लिए प्राथमिकता दी. जबकि पार्टी ने 2019 में एक मंत्री के आफर को ठुकरा दिया था. खुद आरसीपी सिंह ने मंत्रिपद की शपथ लेने से चंद घंटे पहले समारोह में शामिल न होने का फैसला कर लिया था. लेकिन वही आरसीपी दो साल बाद अकेले मंत्री क्यों बन गये?
यह सवाल आम जन से ले कर खुद उनकी पार्टी जनता दुल युनाइटेड के अंदर बहस का मुद्दा बना हुआ है. कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या उन्होंने अपने सियासी गुरु और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सहमति के बिना अकेल मंत्रिमंडल में शामिल हो गये.
यह सही है कि नीतीश कुमार ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते मंत्रिपरिषद में शामिल करने के लिये आरसीपी को अधिकृत किया था. पर यह भी कह दिया हो कि अकेले मंत्री बन जायें, यह उचित नहीं प्रतीत होता. क्योंकि ऐसा ही अगर था तो 2019 में एक मंत्री पद को क्यों ठुकराया गया.
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2019 में जो 1 मंत्री पद मिला अगर वही रही तो फिर शामिल नही होगी 16 सांसद के हिसाब से 5 नहीं तो 4 मंत्री तो जरूर बनना ही चाहिये।
खबर तो यह है कि पार्टी के नेता ललन सिंह के साथ सन्तोष कुशवाहा रामनाथ ठाकुर चन्द्रेश्वर चन्द्रवँशी को मंत्री पद की सूची में शामिल किया गया था. मंत्रिमंडल विस्तार से पहले आरसीपी सिंह ने कहा था कोई पेंच नही है सब ठीक है फिर ऐसा क्या हुआ कि सभी के दावेदारियों को दरकिनार कर खुद अकेले मंत्री बन बैठे?
पार्टी के अंदर कुछ नेते दबी आवाज में यह सवाल भी उठा रहे हैं कि सीएम नीतीश ने जातिवाद का खेल खेला और गेमप्लान के तहत आरसीपी को कुर्मी होने का फायदा दिला मंत्री बनवा दिया.
जबकि कुछ लोग यह भी कहते हुए सुने जा रहे हैं कि आरसीपी ने अंत तक नीतीश को अंधेरे में रख खुद मंत्री बन बैठे. उनके इस निर्णय से ललन सिंह को और अन्य सांसदों को तो झटका लगा ही सबसे ज्यादा चोट नीतीश को लगा क्योकि आरसीपी के निर्णय ने उन्हें रातोरात जातिवादी नेता बना दिया.
ऊपर हमने जिन अलग-अलग लोगों के अलग-अलग विचारों का उल्लेख किया है. हो सकता है कि इन बिंदुओं से आने वाले दिनों में पर्दा उठे. लेकिन फिलवक्त तो यह ही कहा जा सकता है कि जनता दल युनाइटेड के अंदर कुछ तो है जो पार्टी की साख को दाव पर लगा चुका है.
(यह लेखक के निजी विचार हैं.)