SaatRang : क्या मोदी जी ऐसी हिम्मत दिखा सकते हैं

मुनव्वर फारूखी के साथ जो कुछ हुआ, वह सिर्फ उन्हीं के साथ नहीं हो रहा। संसद में विपक्ष को बोलने नहीं दिया। विरोध करने पर सत्र से 12 सांसदों को बाहर कर दिया।

संसद के बाहर मीडियाकर्मियों की भारी भीड़ को संबोधित करते राहुल गांधी।

अब संसद की पत्रकार गैलरी में पत्रकार नहीं होते। अब एक कॉमेडियन मुनव्वर फारूखी से पूरी सरकार डरती है, तभी तो इनके 12 कार्यक्रमों को पुलिस ने इजाजत नहीं दी। संसद में विपक्ष को बोलने नहीं दिया जाता है। देश की जनता अब यह नहीं जान पाएगी कि सरकार ने किस मंशा से तीन कृषि कानून लाए, क्यों एक साल तक किसानों की आवाज को कंटीले तारों, लाठी-डंडों से बंद करने की कोशिश की और क्या वजह है कि फिर कानून को वापस कर लिया। यह देश को मालूम होना चाहिए था क्यों कि पूरे साल भर देश इस सवाल से उलझा रहा और 700 से अधिक किसानों को कुरबानी देनी पड़ी।

यह देश का एक पक्ष है। दूसरा पक्ष है इस कॉलम का शीर्षक -क्या मोदी जी ऐसी हिम्मत दिखा सकते हैं। यह शीर्षक युवा कांग्रेस के अध्यक्ष अध्यक्ष बी.वी. श्रीनिवास के ट्वीट से लिया गया है। फोटो में दिख रहा है कि सैकड़ों मीडियाकर्मी राहुल गांधी की बात सुन रहे हैं। सवाल कर रहे हैं और जवाब पा रहे हैं। मीडिया विपक्ष से सवाल कर सकता है, लेकिन सत्ता से सवाल करने की जगह खत्म हो गई है। सरकार मीडिया से भी डरती है। हालांकि ज्यादातर मीडिया सरकार के गुणगान में ही लगे हैं और संसद की प्रेस गैलरी में पत्रकारों को इजाजत दी जाए, तब भी अखबार और चैनल सरकार के पक्ष में ही चीखेंगे, लेकिन इसमें भी सरकार को खतरा और डर लगता है। अगर एक ने भी सत्य दिखा दिया तब?

संसद परिसर में पत्रकारों की भीड़ और विपक्ष का तेवर बता रहा है कि आप आवाज उठाने का एक रास्ता बंद कर देंगे, तो दूसरा रास्ता निकल आएगा। हां, नया रास्ता कठिन होगा, लेकिन आवाज जिंदा न रही, तो स्वतंत्र आदमी और गुलाम में फर्क मिट जाएगा।

मुनव्वर ने अपनी आवाज बंद कर दी। उन्होंने लिखा कि नफरत जीत गई और हम हार गए। गुड बॉय। मुनव्वर को अपना फैसला लेने की स्वतंत्रता है। लेकिन ऊपर का फोटो दिखा रहा है कि आवाज संसद के भीतर बंद कर दी गई, तो वह बाहर मुखर हो गई। संसद न सही, सड़क ही सही। जब सड़क की आवाज खेत-खलिहानों की आवाज बन गई , तो सरकार को अचानक पैर पीछे खींचना पड़ा। कृषि कानून वापस लेना पड़ा। मीडिया गोदी मीडिया बन गया है, तो समानांतर मीडिया-सोशल मीडिया आवाज उठाने का नया जरिया बन गया। संभव है, यह रास्ता भी कल बंद हो जाए, तो जनता कोई नया रास्ता खोज लेगी। उम्मीद है, मुनव्वर भी कोई नया रास्ता ढूंढ़ेंगे। ऊपर की तस्वीर बंद होती आवाजों के दौर में उम्मीद जगाती है।

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By Editor


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