SaatRang : वीरायतन की नन्ही परी बोली, वह कभी रोई नहीं
वीरायतन में एक नन्ही परी सान्वी रहती है। वह गौरैया की तरह चंचल है। हमेशा मुस्काती। कहा, वह आज तक किसी बात के लिए रोई नहीं। क्या है कारण?
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कुमार अनिल
वीरायतन, राजगीर के बच्चे भी अद्भुत हैं। यहीं रहती है सान्वी। उम्र लगभग पांच साल। वीरायतन के स्कूल में पहले क्लास में पढ़ती है। हमेशा मुस्काती, गौरैया-सी चंचल। उसकी दो बातों ऐसी हैं, जिसे सुनकर आपको बहुत गुनना होगा।
सान्वी ने कहा, उसे डर नहीं लगता। पूछा, सबको डर लगता है, तुम्हें क्यों नहीं लगता? सान्वी के पास जवाब तैयार था। बोली-यहां ताई मां रहती हैं। उनके रहते यहां चोर-बदमाश कैसे आ सकता है? आचार्यश्री चंदना जी को लोग सम्मान के साथ ताई मां भी कहते हैं। और उसकी दूसरी बात भी उतनी ही गहरी है। बातों-बातों में उससे पूछा कि तुम हमेशा खुश रहती हो, क्या कभी रोती भी हो? उसने फिर बिना देर किए कहा-वह आज तक कभी रोई नहीं।
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प्रायः धार्मिक लोग उदास मिलते हैं। मंदिर में भी, घर में भी। किसी साधु के पास भी जाते हैं, तो उदासी लिये। जरूर बच्चे हंसते-खेलते मिलते हैं, लेकिन ऐसा बच्चा खोजना मुश्किल है, जो कभी किसी बात के लिए रोता न हो।
वीरायतन में ही एक और बच्चा दिखा-मोहित। माली बड़े जतन से छोटे-छोटे मिट्टी के गोल चुक्कड़ (कुल्हड़) में छोटे-छोटे पौधे लगा रहे थे। मोहित उन पौधों में पानी डाल रहा था। पानी डालने के लिए उसने प्लास्टिक के बोतल के कैप में छोटे-छोटे छेद वाला बोतल ले रखा था। बाद में मालूम हुआ मोहित सान्वी का छोटा भाई है। सोचिए, सान्वी और मोहित के माता-पिता कितने खुश होंगे!
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इस कॉलम के लेखक का मकसद इन बच्चों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करना नहीं है। लेखक का इरादा तो बस इतना है कि उसने जो देखा, उसे आपके सामने रख दे। हमारे पास हर सवाल का रेडिमेड जवाब हाजिर रहता है। निवेदन बस इतना है कि थोड़ा रुक कर सोचें। गुनें।
आप समझ गए होंगे कि जो मोहित बिना किसी के कहे इतने लगन से पौधों को पानी दे रहा है, वह किसी फूल को तोड़ नहीं सकता। किसी पौधे को नुकसान नहीं पहुंचा सकता। जो पौधों से, फूलों से प्यार करेगा, स्वाभाविक है, यह प्यार उसके भीतर फैलेगा।
सोचिए, सान्वी के मन में ताई मां की जो छवि बनी है, उसके पीछे क्या कारण होंगे? इंद्र हमेशा भयभीत रहता था। राजा को विरोधी का भय सताता है। मंत्री अपने पद को लेकर भय में रहता है। छोटे लोग छोटे स्वार्थ के कारण भयभीत रहते हैं। सान्वी को कोई भय नहीं। उसके पास ताई मां जो हैं। सोचिए, ताई मां और बच्चों के बीच का संबंध कैसा होगा? किस आधार पर यह संबंध टिका होगा, जिससे इतनी सुगंध फैल रही है।
वीरायतन में देखने-समझने के लिए बुहत कुछ है। लेकिन आचार्य श्री चंदना जी और साध्वी संघ इसके केंद्र में है। कभी मिलकर देखिए, वे क्या करती हैं, उनके विचार क्या हैं। लेखक को भरोसा है कि जो बात आप शास्त्रों से नहीं समझ सकते, वह उनसे मिलकर समझ सकते हैं।
ओशो कहते हैं संसार या जीवन को रेलवे स्टेशन का वेटिंग रूम समझो। तुम्हारे पहले भी यहां हजारों यात्री आए हैं और आगे भी आएंगे। इसलिए इस वेटिंग रूप में इस तरह रहो कि बाद में आनेवाले यात्री कहें कि यहां पहले वाले लोग कितने प्रेम से भरे थे, दूसरों का कितना ख्याल रखनेवाले थे, कितने करुणापूर्ण, कितने विनयशील!
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