सामाजिक न्याय का एजेंडा अधूरा, देश में हो जातीय जनगणना : IPF

ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (IPF) ने कहा कि EWS कोटे में एससी, एसटी और पिछड़े वर्ग को बाहर किया गया है, वह न्यायसंगत नहीं है। देश भर में हो जातीय जनगणना।

ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (IPF) के राष्ट्रीय अध्यक्ष एस. आर. दारापुरी ने बताया कि संगठन ने EWS कोटे में एससी, एसटी और पिछड़े वर्ग को बाहर किए जाने का विरोध किया है। इन तबकों को बाहर करना न्यायसंगत नहीं है। आईपीएफ ने देश भर जातीय जनगणना कराए जाने की मांग। आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट की राष्ट्रीय कार्यसमिति की वर्चुअल बैठक दिनांक 14 नवम्बर 2022को संपन्न हुई, जिसमें इस आशय का प्रस्ताव पारित किया गया।

आईपीएफ ने कहा, 2019 में एनडीए सरकार ने संविधान के द्वारा निश्चित किए गए शैक्षिक और सामाजिक आधार पर दिए गए आरक्षण के साथ इकोनॉमिकली वीकर सेक्शन यानी ईडब्लूएस (आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग) के नाम पर जो जातियां एससी-एसटी और पिछड़े वर्ग में नहीं आती थीं जिसमें मुसलमान और ईसाई भी हैं, उन सभी लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था कर दी। अपवाद में एक क्षेत्रीय दल के अलावा करीब करीब सभी दलों ने संसद में इसे पास कर दिया। पिछले दिनों संविधान के 103 वें संशोधन द्वारा पारित आरक्षण की व्यवस्था को सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वीकार कर लिया। तब से इस पर फिर विवाद तेज हो गया। ऐसी स्थिति में आइपीएफ की राष्ट्रीय कार्यसमिति की मीटिंग में विचार किया गया कि इसे कैसे देखा जाए।

राष्ट्रीय कार्यसमिति महसूस करती है कि यहां कुछ चीजें स्पष्ट हो जानी चाहिए। पहली चीज तो यह है कि अधिकांश दलों ने इसका समर्थन किया है। सुप्रीम कोर्ट में भी 5 जजों की संविधान पीठ ने भी आर्थिक आधार पर आरक्षण देने को न गलत न पाया और न ही संविधान के मूल ढांचे के विरुद्ध। सामान्य वर्ग के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देकर सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण में जो 50 प्रतिशत की सीमा तय की थी उसे भी अपने पूर्व के निर्णयों को नकारते हुए खारिज कर दिया। इन 70 सालों में देश के शासक वर्ग की न्यायिक व्यवस्था में भी यह राय बन गई है कि आर्थिक आधार पर भी आरक्षण दिया जा सकता है। आने वाले दिनों में इसके दूरगामी परिणाम को भी नकारा नहीं जा सकता है।

यह सही है कि भारतवर्ष में इन 70 सालों में बड़े बदलाव हुए हैं । अगर एक बार समाज की जातीय जनगणना करा ली जाए और उसके आर्थिक संबंधों का आकलन कर लिया जाए और उसके आर्थिक स्थिति की समीक्षा हो तो नई आरक्षण व्यवस्था पर बहस हो सकती है। शैक्षिक, सामाजिक, आर्थिक, क्षेत्रीय असंतुलन , निजी व सरकारी स्कूलों के लोगों की असमानता को ध्यान में रखते हुए सामाजिक, शैक्षिक और अन्य कारकों के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था के लिए एक नई बहस की जरूरत है। सामान्य वर्ग ( ईडब्लूएस) आरक्षण कोटे में एससी, एसटी और पिछड़े वर्ग को जो बाहर किया गया है वह भी कतई न्यायसंगत नहीं है। यह जो अभी सामान्य वर्ग के लिए व्यवस्था की गई है इसके पीछे किसी सकारात्मक कार्रवाई (Affirmative Action) से अधिक जातीय जोड़ तोड़ और चुनावी एजेंडा प्रमुख है। इसीलिए जल्दबाजी में संसद को बुलाकर इस संविधान संशोधन को संसद में भाजपा ने पास कराया और अधिकांश दलों ने इसका समर्थन चुनावी लाभ नुकसान की दृष्टि से किया।

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By Editor


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